________________ दोहरा सौलह सै चौरासिए, तखत आगरे थान / बैठ्यौ नाम धराय प्रभु, साहिब साहि किरान // 617 फिरि संबत पञ्चासिए, बहुरि दूसरी बार / भयौ बनारसिके सदन, दुतिय पुत्र अवतार // 618 चोपई बरस एक द्वै अंतर काल / कैथा-शेष हूऔ सो बाल / अलप आउ है आवहिं जांहि। फिर सतासिए संबतमांहि // 619 बानारसीदास आबास / त्रितिय पुत्र हुऔ परगास // उनासिए पुत्री अवतरी / तिन आऊषा पूरी करी // 620 सब सुत सुता मरनपद गहा / एक पुत्र कोऊँ दिन रहा / सो भी अलप आउँ जानिए। तात मृतकरूप मानिए // 621 क्रम क्रम बीत्यौ इक्यानवा / आयौ सोलहसै बानवा // तब ताई धरि पहिली दसा / बानारसी रह्यौ इकरसा // 622 दोहरा आदि अस्सिआ बानवा, अंत बीचकी बात / कछु औरौं बाकी रही, सो अब कहौं विख्यात // 623 चले बरात बनारसी, गए चाटसू गांउ / बच्छा-सुतकौं ब्याहकै, फिरि आए निज ठांउ / / 624 अरु इस बीचि कबीसुरी, कीनी बहुरि अनेक / नाम 'सुक्तिमुकतावली,' किए कबित सौ एक // 625 1 ई स पिच्चासिए। 2 ड कथासेष। 3 ई स कोई। 4 ड आयु / 5 व ड बहुत / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org