________________ 68 निंदा थुति जैसी जिस होइ / तैसी तासु कहै सब कोइ // पुरजन बिना कहे नहि रहै / जैसी देखै तैसी कहै // 609 दोहरा सुनी कहै देखी कहै, कलपित कहै बनाइ / दुराराधि ए जगत जन, इन्हसौं कछु न बसाइ // 610 चौपई जब यह धूमधाम मिटि गई / तब कछु और अवस्था भई / जिनप्रतिमा निंदै मनमांहि / मुखसौं कहै जो कहनी नांहि / 611 करै बरत गुरु सनमुख जाइ / फिरि भानहि अपने घर आइ // खाहि रात दिन पसुकी भांति / रहै एकंत मृषामदमांति // 612 दोहरा यह बनारसीकी दसा, भई दिनहु दिन गाढ़ / तब संबत चौरासिया, आयौ मास असाढ़ // 613 भयौ तीसरी नारिकै, प्रथम पुत्र अवतार / दिवस कैकु रहि उठि गयौ, अलपआयु संसार / / 654 चौपई छत्रपति जहांगीर दिल्लीस / कीनौ राज बरस बाईस // कासमीरके मारग बीच / आवत हुई अचानक मीच // 615 मासि चारि अंतर परवान / आयौ साहिजिहां सुलतान / बैठ्यौ तखत छत्र सिर तानि। चहू चक्कमै फेरी आनि // 61.6 १ब आव। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org