________________ ऐसी दसा भई एकंत / कहौं कहां लौं सो विरतंत // बिनु आचार भई मति नीच / सांगानेर चले इस बीच // 599 बानारसी बराती भए / तिपुरदासकौं ब्याहन गए // ब्याहि ताहि आए घरमांहि / देवचढ़ाया नेबज खांहि 600 कुमती चारि मिले मन मेल / खेला पैजारहुका खेल // सिरकी पाग लैंहि सब छीनि / एक एककौं मारहिं तीनि // 601 - दोहरा चन्द्रभान बानारसी, उदैकरन अरु थान / चारौं खेलहिं खेल फिरि, करहिं अध्यातम ग्यान // 602 नगन हौंहिं चारौं जनें, फिरहिं कोठरीमांहि / कहहिं भए मुनिराज हम, कछू परिग्रह नांहि // 603 गनि गनि मारहिं हाथों, मुखसौं करहिं पुकार / जो [मान हम करैतहे, ताके सिर पैजार // 604 गीत सुनै बातें सुनें, ताकी बिंग बनाइ / कहैं अध्यातममैं अरथ, हैं मृषा लौ लाइ // 605 चौपई पूरब कर्म उदै संजोग / आयौ उदय असाता भोग / तातें कुमत भई उतपात / कोऊ कहै न मानै बात // 606 जब लौं रही कर्मबासना / तब लौं कौन बिथा नासना // असुभ उदय जब पूरा भया / सहजहि खेल शूटि तब गया // 607 कहहिं लोग श्रावक अरु जती / बानारसी खोसँरामती // तीनि पुरुषकी चलै न बात। यह पंडित तातें विख्यात // 608 १बई पादत्राण / 2 अ गुनमान / 3 अ कर गहे, इ करत है। 4 ब करम। 5 ड खुसरामती, ब पुष्करामती, ई पुसकरामती / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org