________________ चौपई कही सुनी बहुतेरी बात / दोऊ विप्र करें अपघात // तत्व बनारसी सोचि बिचारि / दी. दांमनि मेटी रारि / / 554 दोहरा बारह दिए महेसुरी, तेरह दीनें आप / यांभन गए असीस दै, भए बनिक निष्पाप // 555 अपने अपने गेह सब, आए मए निचीत / रोएं बहुत बनारसी, हाइ मीत हा मीत // 556 घरी चारि रोए बहुरि, लगे आपने काम / भोजन करि संध्या समय, गए साहुके धाम / / 557 चौपई आवंहि जांहि साहुके भौन / लेखा कागद देखें कौन // बैठे साहु विभौ-मदमांति / गावहिं गीत कलावत-पांति // 558 धुरै पखावज बाजै तांति / सभा साहिजादेकी भांति // दीजहि दान अखंडित नित्त / कवि बंदीजन पढ़हि कबित्त // 559 कही न जाइ साहिबी सोइ / देखत चकित होइ सब कोइ॥ बानारसी कहै मनमांहि / लेखा आइ बना किस पाहि // 560 सेवा करी मास द्वै चारि। कैसा बनज कहांकी रारि // जब कहिए लेखेकी बात / साहु जुवाब देहि परभात // 561 मासी घरी छमासी जाम / दिन कैसा यह जानै राम // सूरज उदै अस्त है कहां / विषयी विषय-मगन है जहां // 563 1 स ई दाम जु / - 2 ब कीनो रुदन बनारसी / 3 अ पूछह / 4 इस पंक्तिसे लेकर 967 तककी पंक्तियाँ ब प्रतिमें नहीं हैं / 5 व ऊगै अथवै कहां / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org