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फिरि महेसरी लियौ बुलाय । कहं तु जाहि कहांसौं आइ ॥ तब सो कहे जौनपुर गांउ । कोठीबाल आगरे जांउ ।। ५१८॥ फिरि बनारसी बोलै बोल । मैं जौहरी करौं मनिमोल । कोठी हुती बनारसमांहि । अब हम बहुरि आगरै जांहि ॥५१९॥
दोहरा साझी नेमा साहुके, तखत जौनपुर भौन । व्यौपारी जगमैं प्रकट, ठगके लच्छन कौन ॥ ५२० ॥
चौपई कही बात जब बानारसी । तब वे कहन लगे पारसी ॥ एक कहै ए ठग तहकीक । एक कहै ब्यौपारी ठीक ॥ ५२१॥ कोतवाल तब कहै पुकारि । बांधहु बेग करहु क्या रारि ॥ बोलै हाकिमकी दीवान । अहमक कोतबाल नादान ॥ ५२२॥ रोति समै सूझ नहिं कोई । चोर साहुकी निरख न होइ॥ कछु जिन कहौ रातिकी राति । प्रात निकसि आवैगी जाति॥५२३॥ कोतवाल तब कहै बखानि । तुम ढूंढ़हु अपनी पहिचानि ॥ कोररा, घाटमपुर अरु बरी । तीनि गांउकी सरियति करी॥५२४॥ और गांउ हम मानंहि नाहि । तुम यह फिकिर करहु हम जांहि । चले मुगल बादा बदि भोर । चौकी बैठाई चहुओर ।। ५२५ ॥
दोहरा सिरीमाल बानारसी, अरु महेसुरीजाति ।
करहिं मंत्र दोऊ जैनें, भई छमासी राति ॥ ५२६ ॥ १ ब रजनी समै न रुक है कोइ । २ अ निरत । ३ व पुरुष ।
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