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भाई एक सराफको, आइ गयौ इस बीच । मुख मीठी बातें करै, चित कपटी नर नीच ॥ ५०८ तिन बांभनके बस्त्र सब, टेकटोहे करि रीस । लख रुपैया गांठिमैं, गिनि देखे पच्चीस ॥ ५०९ सबके आगै फिरि कहै, गैरसाल सब दर्व । कोतवालपै जाइकै, नजरि गुजारौ सर्व ॥ ५१० बिप्र जुगल मिसु करि परे, मृतकरूप धरि मौन । बनिया सबनि दिखाइ लै, गयौ गांठि निज भौन ॥५११ खरे दाम घरमैं धरे, खोटे ल्यायौ जोरि। मिही कोथैलीमांहि भरि, दीनी गांठि मरोरि ॥ ५१२॥ लेइ कोथली हाथमैं, कोतबालपै जाइ। खोटे दाम दिखाइकै, कही बात समुझाइ ॥ ५१३॥
चौपई साहिबजी ठग आये घनें । फैले फिरहिं जांहि नहिं गर्ने । संध्यासमै हौंहि इक ठौर । है असबार करहु तब दौर ॥ ५१४॥ यह कहि बनिक निरौलो भयौ । कोतवाल हाकिमपै गयौ । कही बात हाकिमके कान । हाकिम साथ दियौ दीवान ॥५१५॥ कोतवाल दीवान समेत । सांझ समै आए ज्यौं प्रेत । पुरजन लोक साथि सै चारि । जनु सराइमैं आई धारि ।। ५१६॥ बैठे दोऊ खाट बिछाइ । बांभन दोऊ लिए बुलाइ । पछै मुगल कहहु तुम कौन । कहै बिन मथुरा मम भौन ॥ ५१७॥
१ अ एकटोहे । २ ड ई कोथरी । ३ ड निरासौ ।
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