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ताही दिन आयौ तहां, और एक असबार । कोठीबाल महेसुरी, बसै आगरै बार ॥ ४९९
चौपई
घट सेबक इक साहिब सोइ। मथुराबासी बांभन दोइ ॥ नर उनीसकी जुरी जमोति । पूरा साथ मिला इस भांति ॥ ५०० कियौ कौल उतरहिं इकठौर । कोऊ कहूं न उतरै और ॥ चले प्रभात साथ करि गोल । खेलहिं हंसहिं करहिं कल्लोल ॥५०१
दोहरा गांउ नगर उलंधि बहु, चलि आए तिस ठांउ । जहां घाटमपुरके निकट, बस कोररी गांउ ॥ ५०२ उतरे आइ सराइमैं, करि अहार विश्राम । मथुरावासी विप्र द्वै, गए अहीरी-धाम ॥ ५०३ दुहमैं बांभन एक उठि, गयौ हाटमैं जाइ । एक रुपैया काढ़ि तिनि, पैसा लिए भनाई ।। ५०४ आयौ भोजन साज ले, गयौ अहीरी-गेह । फिरि सराफ आयौ तहां, कहै रुपैया एह ।। ५०५ गैरसाल है बदलि दै, कहै बिप्र मम नांहि । तेरा तेरा यौँ कहत, भई कलह दुहुमांहि ॥ ५०६ मथुराबासी बिपर्ने, मारयौ बहुत सराफ ।
बहुत लोग बिनती करी, तऊ करै नहिं माफ ॥ ५०७ १ व कोरड़ा । २ व भुनाय । ३ ब कह्यो ।
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