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तब दोऊ खुसहाल है, मिले होइ इक चित्त । तिस दिनसौं बानारसी, नित्त सराहै मित्त ॥ ४८४ रीझि नरोत्तमदासकौ, कीनौ एक कबित्त । पढ़े रैन दिन भाटसौ, घर बजार जित कित्त ॥ ४८५
- सवैया इकतीसा नरोत्तमदासस्तुति
नवपद ध्यान गुन गान भगवंतजीको,
करत सुजान दिदग्यान जग मानियै ।। रोम रोम अभिराम धर्मलीन आठौ जाम, ___ रूप-धन-धाम काम-मूरति बखानियै ।। तनको न अभिमान सात खेत देत दान,
महिमान जाके जसकौ बितान तानिय । - महिमानिधान प्रान प्रीतम बनारसीको, चहुपद आदि अच्छरन्ह नाम जानिय ॥ ४८६
चौपई बानारसि चितै मनमाहि । ऐसो मित्त जगतमैं नाहि ॥ इस ही बीच चलनको साज । दोऊ सौझी करहिं इलाज ॥४८७ खासेनजी जहमति परे । आइ असाधि बैदनैं करे । मानारसी नरोत्तमदास । लाहनि कछू कराई तास ॥ ४८८ संबत तिहत्तरे बैसाख । सातें सोमवार सित पाख । तब साझेका लेखा किया । अब असबाब बांटिकै लिया ॥ ४८९
२ अ पढे रातदिन एकसौ । ३ अ साजी, ब सायी। .
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