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घरके लोग कहूं छिपि रहे । दोऊ यार उतर दिसि बहे ।। दोऊ मित्र चले इक साथ । पांउ पियादे लाठी हाथ ॥४६४॥ आए नगर अजोध्यामांहि । कीनी जात रहे तहां नांहि ॥ चले चले रौनाही गए। धर्मनाथके सेवक भए ॥ ४६५ ॥
दोहरा पूजा कीनी भगतिसौं, रहे गुपत दिन सात । फिरि आए घरकी तरफ, सुनी पंथमंह बात ॥ ४६६ ॥ आगानूर बनारसी, और जौनपुर बीच । कियौ उदंगल बहुत नर, मारे करि अधमीच ॥ ४६७॥ हक नाहक पकरे सबै, जड़िया कोठीबाल । हुंडीवाल सराफ नर, अरु जौहरी दलाल ॥४६८ काहू मारे कोररा, काहू बेड़ी पाइ। काहू राखे भाखसी, सबकौं देइ सजाइ ॥ ४६९
चौपई सुनी बात यह पंथिक पास । बानारसी नरोत्तमदास । घर आवत हे दोऊ मीत । सुनि यह खबरि भए भयभीत ।। ४७० सुरहुरैपुरकौं बहुरौं फिरे । चढ़ि घड़नाई सरिता तिरे । जंगलमाहिं हुतौ मौवास । जहां जाइ करि कीनौ बास ॥ ४७१ दिन चालीस रहे तिस ठौर । तब लौं भई औरकी और ॥ आगानूर गयौ आगरे । छोड़ि दिए प्रानी नागरे ॥ ४७२ . नर द्वै चारि हुते बहुधनी। तिन्हकौं मारि दई अति धनी॥ बांधि है गयौ अपने साथ । हक नाहक जानै जिननाथ ॥४७३
१ स रोनाई । २ व सुरहुरपुरसौं ।
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