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.दोहरा कबहुं नाममाला प?, छंद कोस उतबोध । करै कृपा नित एकसी, कबहुं न होइ विरोध ॥ ४५५ ॥
चौपई बानारसी कही किछु नांहि । पै उनि भय मानी मनमांहि ।। तब उन पंच बदे नर च्यारि । तिन्ह चुकाइ दीनी यह रारि ॥४५६ चुक्यौ झगरा भयौ अनंद । ज्यौं सुछंद खग छूटत फंद ॥ सोलह सै बहत्तरै बीच । भयौ कालबस चीनि किलीच ॥४५७॥ बानारसी नरोत्तमदास । पटने गए बनजकी आस ॥ मांस छ सात रहे उस देस । थोरा सौदा बहुत किलेस ॥४५८॥ फिरि दोऊ आए निज ठांउ । बानारसी जौनपुर गांउ॥ इहां बनज कीनौ अधिकाइ । गुप्त बात सो कही न जाइ ॥४५९॥
दोहरा आउ वित्त निज गृहचरित, दान मान अपमान । औषध मैथुन मंत्र निज, ए नव अकह-कहान ॥ ४६०॥
चौपई तातें यह न कही विख्यात । नौ बातन्हमैं यह भी बात ॥ कीनी बात भली अरु बुरी । पटनें कासी जौनापुरी ॥ ४६१॥ रहे बरस द्वै तीनिहु ठौर । तब किछु भई औरकी और ।। आगानूर नाम उमराउ । तिसकौं साहि दियौ सिरपाउ ॥ ४६२॥ सो आवतौ सुन्यौ जब सोर । भागे लोग गए चह ओर तब ए दोऊ मित्र सुजान ! आए नगर जौनपुर थान ॥ ४६३॥ १स प्रतिमें यह पंक्ति नहीं है।
चापई
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