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बहरौं लागे अपने काज । रोजगारको करन इलाज।
लेंहि देहि थोरा अरु धना । चूंनी मानिक मोती पना ॥ ४४५ ॥ ___ कबहूँ एक जौनपुर जाहि । कबहूं रहै बनारसमाहि ।
दोऊ सकृत रहैं इक ठौर । ठानहिं भिन्न भिन्न पग दौर ।।४४६॥ करहिं मसक्कति आलस नांहि । पहर तीसरे रोटी खांहि ।। माय छ सात गए इस भांति । बहुरौं कछु पकरी उपसांति ॥४४७ 'योरा दौरहि खाइ सबार । ऐसी दसा करी करतार ॥ चीनी किलिच खान उमराउ । तिन बुलाइ दीयौ सिरपाउ ॥४४८
दोहरा
बेटा बड़ो किलीचकौ, च्यार हजारी मीर । नगर जौनपुरको धनी, दाता पंडित बीर ॥ ४४९ ।। चीनी किलिच बनारसी, दोऊ मिले बिचित्र । वह यासौं किरिपा करै, यह जानै मैं मित्र ॥ ४५० ॥ एहि बिधि बीते बहुत दिन, बीती दसा अनेक । बैरी पूरब जनमको, प्रगट भयौ नर एक ॥ ४५१ ॥ तिनि अनेक बिधि दुख दियौ, कहाँ कहां लौं सोइ । जैसी उनि इनसौं करी, ऐसी करै न कोइ ॥४५२ ॥
चौपई बानारसी नरोत्तमदास । दुहुकौं लेन न देइ उसास ॥ दोऊ खेद खिन्न तिनि किए । दुख भी दिए दाम भी लिए ॥४५३ मास दोइ बीते इस बीच । कहूं गयौ थौ चीनि किलीच ।। आयौ गढ़ मौवासा जीति । फिरि बनारसीसेती प्रीति ॥४५४ ॥
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