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/ फत्तेपुर इन्ह रूखन तले । ' चिरं जीव ' कहि तीनों चले ॥ कोस दोइ दीसै लखेराउ । फिर द्वै कोस फतेपुर गांउ ॥ ४२७ ॥ आइ फतेपुर लीनी ठौर । दोइ मजूर किए तहां और ॥ बहुरौं त्यागि फतेपुर - बास । गए छ कोस इलाहाबास ॥ ४२८ ॥ जाइ सराइ उतारा लिया । गंगाके तट भोजन किया || बानारसी नगरम गयौ । खरगसेनकौ दरसन भयौ ॥ ४२९ ॥ दौरि पुत्र पकरे पाइ । पिता ताहि लीनौ उर लाइ ॥ पूछे पिता बात एकंत । कह्यौ बनारसि निज बिरतंत || ४३० ॥ सुतके बचन हिए मैं धरे । खाइ पछार भूमि गिरि परे ॥ मूर्छागति आई ततकाल । सुखमैं भयौ ऊचलाचाल ॥ ४३१ ॥ घरी चारि लौं बेसुध रहे । स्वासा जगी फेरि लहलहे ॥ बानारसी नरोत्तमदास डोली करी इलाहाबास ॥ ४३२ ॥ खरगसेन की असबार । बेगि उतारे गंगापार ॥
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तीनौं पुरुष पियादे पाइ | चले जौनपुर पहुंचे आइ ॥ ४३३ ॥ बानारसी नरोत्तम मित्त । चले बनारसि बनज - निमित्त || जाइ पास-जिन पूजा करी । ठाढ़े होइ बिरति उच्चरी ||४३४ ||
अडिल
કેટ
सांझसमै दुबिहार, प्रात नौकारसहि । एक अधेला पुन्न, निरंतर नेम गहि || नौकरवाली एक जाप, नित कीजिए ।
दोप लगे परभात, तौ वीउ न लीजिए ॥ ४३५ ॥
१ ब लखगांव । २ व धाय |
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