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कलाके युगमें उनकी धुमखड़ी शुरू हुई और उन्होंने मथुरा, कनौल,
और डाहलकी यात्रा की तथा कुछ दिनोंतक डाहलके कर्ण, अणहिलबाडले कर्णदेव त्रैलोक्यमल्ल (१०६४-११२७) तथा कल्याणके विक्रमादित्य हो (१०७६-११२७) के यहाँ रहे तथा सन् १०८८ में विक्रमांकदेवचरित रचना की। उनके ग्रंथका विषय तो इतिहास है पर रह रहकर हम कविको आत्मकथाकी, जिसमें कोरी तीखी बातें सुनाना भी आ जाता है, झलक पाते हैं।
मुसलमानोंके उत्तर भारतमें अधिकार पानेके बाद फारसीमें एक ऐसे साहित्यका सृजन हुआ जिसमें इतिहास और आत्मकथाका मेल है । ऐसे साहित्यकारों में अमीर खुसरोका नाम अग्रणी है । खुसरो ( १२५५-७२५ हि०) कवि, सिपाही, संगीतज्ञ और सूफी थे। उनका प्रभाव काव्यक्षेत्रमें इतना बढ़ा कि उनके पहलेके कवियोंके नामतक लोग भूल गए । उन्होंने अपने जीवनमें सात सुल्तानोंके राज्य देखे, उनमस कइयों के साथ वह लड़ाइयोंपर गए और पाँच सुल्तानोंकी सेवामें ओहदेदार रहे। अपने जीवन में उन्होंने अनेक उतारचढ़ाव देखे, सुल्तानोंकी विलासिता और रागरंग देखा तथा तत्कालीन बर्बरता - पर आँसू बहाए । अपने दीवानोंके दीबाचोंमें खुसरोने खुलकर अपनी रामकहानी कही है और उनकी ऐतिहासिक मसनवियोंमें भी आँखों देखी अनेक घटनाओंका जिक्र है। ऐजाज खुसरवीमें उनके पत्रोंका संग्रह है जिनसे मध्यकालीन जीवन के अनेक छोटे छोटे अंगोंपर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है। यह सच है कि खुसरोने कोई अलगसे अपना आत्मचरित नहीं लिखा, पर दीवानोंके दीवाचों और ऐतिहासिक मसनवियोंमें उसने अपनी रामकहानी इतनी छोड़ दी है कि उसके आधारपर ही मध्यकालके इस महान पुरुषका पूरा आँखों देखा चित्र खड़ा हो जाता है। ___ मुसलमान बादशाहों में तो आत्मचरित लिखनेकी परिपाटी ही चल पड़ी थी
और इसम संदेह नहीं कि बाबर और जहाँगीरके आत्मचरितोंमें उस मनुष्यताका दर्शन और आसपासकी दुनियाका विवरण मिलता है जिसका पता मध्यकालीन साहित्य में कम ही दिखलाई पड़ता है। मध्य एशियाने हमें तैमूरलंग, बाबर, हैदर और अबुल गाजीके आत्मचरित दिए हैं ! फारसके शाह तहमास्पका आत्मचरित हमें आकर्षित करता है, तथा भारतके गुलबदन बेगम और जहाँगीर के आत्मचरित प्रसिद्ध है।
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