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________________ २९ आइ वाला गिरि परयौ, सक्यौ न आपा राखि । फूटि भाल लोहे चल्यो, कह्यौ ' देव ' मुख-भाखि ॥ २४९ ॥ लगी चोट पाखानकी, भयौ गृहांगन लाल | ' हाइ हाइ ' सब करि उठे, मात तात बेहाल ॥ २५० चौपई गोद उठाय माइनें लियौ । अंबर जारि घाउमैं दियौ || खाट बिछाइ सुबायौ बाल । माता रुदन करै असराल ।। २५१ इस ही बीच नगरमैं सोर । भयौ उदंगल चारिहु ओर || घर घर दर दर दिए कपाट | हटवानी नहिं बैठे हाट || २५२ भले बस्त्र अरु भ्रसन भले । ते सब गाड़े वरती तले ॥ हंडवाई गाड़ी कहुं और । नगदी माल निभरमी ठौर ।। २५३ घर घर सवनि विसाहे सत्र | लोगन्ह पहिरे मोटे बस्त्र || ओढे कंबल अथवा खेस | नारिन्ह पहिरे मोटे बेस ।। २५४ ऊंच नीच कोउ न पहिचान । धनी दरिद्री भए समान ॥ चोरि धारि दीसे कहुं नांहि । यौं ही अपभय लोग डरांहि ।। २५५ दोहरा धूम धाम दिन दस रही, बहुरौ वरती सांति । चीटी आई सबनिक, समाचार इस भांति ॥ २५६ प्रथम पातिसाही करी, बावन बरस जलाल । अब सोलहसै बासठे, कातिक हुओ काल ॥ २५७ १ ब ' तिवाला' । २ ब लोही ३ ब चोर धार । ४ डा० वासुदेवशरणजीकी राय है कि अकबरका ५२ वर्षतक राज्य करना हिजरी सनकी दृष्टिसे जान पड़ता है जिसमें चान्द्रमासकी गणना चलती है । यों अकबरका ५० वर्ष राज्य करना सुविदित है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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