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हीरानंद लोग-मनुहारि । रहे जौनपुरमैं दिन चारि॥ पंचम दिवस पारके बाग । छठे दिन उठि चले प्रयाग ॥ २४२
दोहरा संघ फूटि चहुं दिसि गयौ, आप आपकौ होइ । नदी नांव संजोग ज्यौं, बिछुरि मिलै नहिं कोइ ॥ २४३
चौपई इहि बिधि दिवस कैकुं चलि गए । खरगनजी नीके भए ।। सुख समाधि बीते दिन घनें। बीचि धीचि दुख जांहि न गनें ॥२४४
दोहरा इस अवसर सुत अवतरचौ, बानारसिके गेह । भव पूरन करि मरि गयौ, तजि दुल्लभ नरदेह ।। २४५
चौपई संबत सोलह स बासठा । आयौ कातिक पावस नठा ॥ छत्रपति अकबर साहि जलाल । नगर आगरे कीनौं काल ॥ २४६ आई खबर जौनपुरमांह । प्रजा अनाथ भई बिनु नाह ॥ पुरजन लोग भए भयभीत । हिरद ब्याकुलता मुख पीत ॥ २४७
दोहरा अकसमात बानारसी, सुनि अकबरको काल । सीढ़ी परि बठ्यौ हुतो, भयौ भरम चित चाल ।। २४८ १ब कैक । २ ब कातिग ।
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