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________________ 9 दिन दस रहे बनारसी, नगर बनारसमांहि । पूजा कारन घोहरे, नित प्रभात उठि जांहि ॥२३४ एहि विधि पूजा पासकी, कीनी भगतिसमेत । फिरि आए घर आपन, लिए संखोली सेत ॥ २३५ पूजा संख महेसकी, करकै तौ किछु खांहि । देस विदेस इहां उहां, कबहुं भूली नांहि ! २३६ सोरठा संखरूप सिवदेव, महा संख बानारसी। दोऊ मिले अवेव, साहिव सेवक एकसे ॥ २३७ दोहा इस ही बीचि उसे परे, खरगसेनके भौन । भयौ एक अलपायु सुत, ताहि बखानै कौन ॥२३८ __ चौपई संबत सोलह से इकसठे । आए लोग संघसौं नठे ॥ केई उबरे केई मुः । केई महा जहमती हुए ॥ ३३९ खरगसेन पटनेंमौं आइ । जहमति परे महा दुख पाइ ॥ उपजी विथा उदरम राग । फिरि उपसमी आउल-जोग ॥ २४८ संघ साथ आए निज वाम । नंद जौनपुर कियौ मुकाम । खरगसेन दुख पायौ वाट । घरम आइ परे फिरि खाट ॥ २४१ १अ कीधी । २ ब अमेव । ३ अ उदरके । ४ ब आरबल, ड आयुबल ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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