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तिनि प्रयागपुर नगरसौं, कीनौ उद्दम सार। संघ चलायौ सिखिरकौं, उतरचौ गंगापार ॥ २२५५ ठौर ठौर पत्री दई, भई खबर जिततित्त । चीठी आई सेनकौं, आवहु जात-निमित्त ॥ २२६ खरगसेन तब उठि चले, दै तुरंग असबार । जाइ नंदजीकों मिले, तजि कुटंब घरबार ॥ २२७
चौपई खरगसेन जात्राकौं गए । बानारसी निरंकुस भए ।। करें कलह मातासौं नित्त । पारस-जिनकी जात निमित्त ॥२२८ दही दूध धृत चावल चने । तेल तंबोल पहुप अनगने । इतनी बस्तु तजी ततकाल । पन लीनौ कीनौ हठ बाल ॥२२९
दोहरा चैत महीनै पन लियौ, बीते मास छ सात । आई पृन्यौ कातिकी, चलै लोग सब जात ॥२३० चले सिवमती न्हानकौं, जैनी पूजन पास । तिन्हके साथ बनारसी, चले बनारसिदास ॥ २३१ कासी नगरीमें गए, प्रथम नहाए गंग । पूजा पास सुपासकी, कीनी परि मन रंग ।। २३२ जे जे पनकी वस्तु सब, ते ते नोल मंगाई। नेवज ज्यों आगे धरै, प्रजै प्रभुके पाइ ॥ २३३ १ ब पार्श्वनाथकी। २ ब प्रथमै न्हाये। ३ व चंग ।
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