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चौपई मासि चारि ऐसी बिधि भए । खरगसेन पटनै उठि गए।
दिन अठ गए॥ फिरि बनारसी खैराबाद । आए मुख लज्जित सबिषाद ॥१९७ मास एक फिरि दूजी चार । घरमैं रहे न गए बजार ।। फिरि उठि चले नारि लै संग । एक सुडोली एक तुरंग ॥ १९८ आए नगर जौनपुर फेरि । कुल कुटंब सब बैठे घेरि ॥ गुरुजन लोग देहि उपदेस । आसिखवाज सुने दरबंस ।।१९९ बहुत पढ़े बांभन अरु भाट । बनिकपुत्र तौ बैठे हाट ॥ बहुत पढ़े सो माँगै भीख । मानहु प्रत बड़ेकी सीख ॥ २००
दोहरा इत्यादिक स्वारथ बचन, कहे सबनि बहु भांति । मानै नहीं बनारसी, रह्यौ सहज-रस मांति ॥ २०१
चौपई फिरि पोसाल भानपै पदै, आसिखबाजी दिन दिन बढ़े। काऊ कह्यौ न मानै कोइ, जैसी गति तैसी मति होइ ॥ २०२ कर्माधीन बनारसि रमै, आयौ संबत साठा सम ॥ साढे संबत एती बात, गई जु कडू कहौं विख्यात ॥ २०३ साठ करि पटनेंसौं गौन । खरगसेन आए निज भौन ॥ साठे ब्याही बेटी बड़ी । बितरी पहिली संपति गड़ी ॥२०४ बनारसीकैं बेटी हुई । दिवस छ-सातमांहि सो मुई ॥ जहमति परे बनारसिदास । कीनें लंघन बीस उपास ॥ २०५
अ बेटी भई। इस प्रतिकी टिप्पणीमें इस लड़कीका नाम 'बीरबाई लिखा है।
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