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बासू-पुत्र भगौतीदास । तिन दीनौ तिन्हको आवास ॥ तिस मंदिरमैं कौनौ बास । सहित कुटंब बनारसिदास॥१४२॥ सुख समाधिसौं दिन गए, करत सु केलि बिलास । चीठी आई बापकी, चले इलाहाबास ॥ १४३॥ चले प्रयाग बनारसी, रहे फतेपुर लोग । पिता-पुत्र दोऊ मिले, आनंदित विधि-जोग ॥ १४४ ॥
चौपई खरगसेन जौहरी उदार । करै जबाहरको बेपार ॥ दानिसाहिजीकी सरकार । लेवा देई रोक-उधार ॥१४५॥ चौरि मास बीते इस भांति । कबहूं दुख कबहूं सुख सांति ॥ फिरि आए फत्तेपुर गांउ । सकल कुटंब भयौ इक ठांउ ॥ १४६॥ मास दोई बीते इस बीच । सुनी आगरे गयौ किलीच ।। खरगसेन परिवारसमेत । फिरि आए आपनै निकेत ॥१४७॥ जहां तहांसों सब जौहरी । प्रगटे जथा गुपत भौंहरी ॥ संबत सोलह से छप्पनै । लागे सब कारज आपनै ॥१४८ ॥ वरस एकलौं बरती छेम । आए साहिब साहि सलेम ॥ बड़ा साहिजादा जगबंद । अकबर पातिसाहिको नंद ॥१४९॥ आखेटक कोल्हूबन काज । पातिसाहिकी भई अवाज ॥ हाकिम इहां जौनपुर थान। लघु किलीच नरम सुलतान ॥१५०॥
१ब करते सकल विलास । २ ब न्यौहार । ड ब्यापार । ३ ब च्यार। ४ ब दोक।
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