________________
ताहि हुकम अकबरको भयौ । सहिजादा कोल्हूबन गयौ॥ तातें सो किछु कर तू जेम । कोल्हूबन नहिं जाय सलेम !। १५१ ।। एहि बिधि अकबरको फुरमान | सीस चढ़ायौ नृरम खान ।। तब तिन नगर जौनपुर बीच । भयौ गढ़पती ठानी मीच ॥१५२।। जहां तहां रूधी सब बाट । नांउ न चलै गौमती-बाट ॥ पुल दरवाजे दिए कपाट । कीनौ तिन विग्रहको ठाठ ॥ १५३ ॥ राखे बहु पायक असवार । चहु दिसि बैठे चौकीदार ॥ कोट कंगरेन्ह राखी नाल । पुरमैं भयौ ऊंचलाचाल ।। १५४ ॥ करी बहुत गढ़ संजोवनी । अन बैस्त्र जलकी ढोवनी ॥ जिरह जीन बंदूक अपार । बहु दारू नाना हथियार ॥ १५५ ।। खोलि खजाना खरचै दाम । भयौ आपु सनमुख संग्राम । प्रजालोग सब ब्याकुल भए । भागे चहू ओर उठि गए ।। १५६ ।। महा नगरि सो भई उजार । । अब आई अब आई धार ।। सब जौहरी मिले इक ठौर । नगरमांहि नर रह्यौ न और ।।१५७॥ क्या कीजै अब कौन बिचार । मुसकिल भई सहित परिबार ।। रहे न कुसल न भागे छेम । पकरी सांप छछंदरि जेम ॥१५८॥ तब सब मिलि नृरमके पास । गए जाइ कीनी अरदास ।। नृरम कहै सुनहु रे साहु । भावै इहां रहौ कै जाह ।। १५१ ।। मेरौ मरन बन्यौ है आइ । मैं क्या तुमकौं कहाँ उपाइ॥ तब सब फिरि आए निजधामा भागहु जो किछु करहि सोराम ॥१६०
१ स उचाला। २ ब रस्तु । ३ अ आई यह ! ४ अ खेम । ५ अ नाचे इहां उहांको जाहु ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org