SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आइ सबनि कीनौ मतौ, भागि जाह तजि भौन । निज निज परिगह साथ ले, परै काल-मुख कौन ॥ ११४ ॥ चौपई यह कहि भिन्न भिन्न सब भए । फूटि फाटिकै चहुंदिसि गए । खरगसेन लै निज परिवार । आए पच्छिम गंगापार ॥ ११५ ॥ नगरी साहिजादपुर नांउ । निकट कड़ो मानिकपुर गांउ ॥ आए साहिजादपुर बीच । बरसै मेघ भई अति कीच ॥ ११६ ॥ निसा अंधेरी बरसा घनी । आइ सराइ बसे गृह-धनी ।। खरगसेन सब परिजन साथ । करहिं रुदन ज्यौं दीन अनाथ ॥११७ दोहरा पुत्र कलत्र सुता जुगल, अरु संपदा अनृप । भोग-अंतराई-उदै, भए सकल दुखरूप ॥ ११८ ॥ चौपई इस अवसर तिस पुर थानिया । करमचंद माहुर बानिया ।। तिन अपनौं घर खाली कियौ । आपु निवास और घर लियौ॥११९॥ भई बितीत रेंनि इक जाम । टेरै खरगसेनको नाम ॥ टेरत बूझत आयौ तहां । खरगसेनजी बैठे जहां ॥१२०॥ 'रामराम' करि बैठ्यौ पास । बोल्यौ तुम साहब मैं दास ॥ चलहु कृपा करि मेरे संग । मैं सेवक तुम चढ़ौ तुरंग ॥ १२१ ॥ जथाजोग है डेरा एक । चलिए तहां न कीजै टेक ॥ आए हितसा तासु निकेत । खरगसेन परिवारसमेत ॥ १२२ ॥ बैठे सुखसौं करि विश्राम । देख्यौ अति विचित्र सो धाम ॥ कोरे कलस धरे बहु माट । चादरि सोरि तुलाई खाट ।। १२३॥ १ ई स पश्चिम। २ ड करा, अ करी मानिकपुर । ३ ब माहोर । ४ ब बितीति। - ~ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy