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भई सगाई बावने, परयौ त्रेपनें काल |
महघा अंन न पाइयै, भयौ जगत बेहाल ॥ १०४ ॥ गयौ काल बीते दिन धने । संवत सोलह मैं चौवने || माघ मास सित पख वारसी । चले विवाहन बानारसी ॥ १०५ ॥ करि विवाह आए निज धाम । दृजी और सुता अभिराम || खरगसेनके घर अवतरी । तिस दिन वृद्धा नानी मरी ॥ १०६ ॥
दोहरा
नानी मरन सुता जनम, पुत्रवधू आगौन ।
तीनों कारज एक दिन, भए एक ही मौन ॥ १०७ ॥ यह संसार बिडम्बना, देखि प्रगट दुख खेद |
चतुर चित्त त्यागी भए, मूढ़ न जानहि भेद || १०८ ॥ इहि विधि दो मास बीतिया | आयौ दुलिहिनिकौ पीतिया || ताराचंद नाम श्रीमाल । सो ले चल्यौ भतीजी नालं ॥ १०९ ॥ खैराबाद नगर सो गयौ । इहां जौनपुर बीतिक भयौ ॥ बिपदा उदै मई इस बीच । पुरहाकिम नौवाच किलीचें ॥११०॥ दोहरा
तिन पकरे सब जौहरी, दिए कोठरीमांहि ॥
बड़ी वस्तु माँगे कछ, सो तौ इनपै नांहि ॥ १११ ॥ एक दिवस तिनि कोप करि, कियौ हुकम उठि भोर । बांध बांधि सब जौहरी, खड़े किए ज्यौं चोर ॥। ११२ ।। हने कटीले कोररे, कीने मृतक समान ।
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दिए छोड़ तिस बार तिन आए निज निज थान ॥ ११३ ॥ ३ स बिरधा । ४ स इ विटंबना | ५ ब ड बीतक । ४ व कलीच ।
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