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चौपई पोतदार कीनौं निज सोइ, दीनै साथि कारकुन दोइ । जाइ परगने कीनौं काम, करहि अमल तहसीलहि दाम !! ५६ ॥ जोरि खजाना भेजहि तहां, राइ तथा लोदीखां जहां ॥ इहि बिधि बीते मास छ सात, चले समेतसिखरिकी जात ।। ५७॥
दोहरा संघ चलायौ रायजी, दियौ हुकम सुलतान । उहां जाइ पूजा करी, फिरि आए निज थान ॥ ५८ ॥ आइ राइ पट-भौनमैं, बैठे संध्याकाल । बिधिसौं सामाइक करी, लीनौं कर जपमाल ॥ ५९॥ चौबिहार करि मौन धरि, जपे पंच नवकार । उपजी मूल उदरवि, हूओ हाहाकार ॥ ६०॥ कही न मुखसौं बात किछु, लही मृत्यु ततकाल ! गही और थिति जाइ तिनि, ढही देह-दीवाल ॥ ६१ ।।
सवैया तेईसा पुंन संजोग जुरे रथ पाइक, माते मतंग तुरंग तबेले। मानि बिभौ अंगयौ सिर भार, कियौ बिसतार परिग्रह ले ले। बंध बढाइ करी थिति पूरन, अंत चले उठि आपु अकेले । हारे हमालकी पोटसी डारिकै, और दिवालकी ओट हो खेले ।। ६२।।
चौपई •एहि बिधि राइ अचानक मुआ। गांउ गांउ कोलाहल हुआ । खरगसेन सुनि यहु बिरतंत । गयौ भागि धेर त्यागि तुरंत ।। ६३ ।। १ड धन।
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