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आठ बरसकौ बालक भयौ । तब चटसाल पढ़नकौं गयौ ।। पढ़ि चटसाल भयौ बितंपन्न । परखै रजत-टका-सोवन्न ॥ ४६॥ गेह उचापति लिदै बनाइ । अत्तो जमा कहै समुझाइ ॥ . लेना देना विधिसौं लिखै । बैठ हाट सराफी सिखै ॥४७॥ बरिस च्यारि जब बीते और । तब सु करै उद्दमेकी दौर ।। पूरब दिसि बंगाला थान । सुलेमान सुलतान पठान ॥४८॥ ताको साला लोदी खान । सो तिन राख्यौ पुत्र समान ॥ सिरीमाल ताकौ दीवान । नांउ राइ धंना जग जान ॥ १९ ॥ सींघड़ गोत्र बंगाले बसै । सेवे सिरीमाल पांचसै ॥ पोतदार कीए तिन सर्व । भौग्य-संजोग कमावहिं दर्व ॥ ५० ॥ करै बिसास न लेखा लेइ । सबकौं फारकती लिखि देइ ॥ पोसह-पडिकौंनासौं पेम । नौतन गेह करनको नेम ॥५१॥
दोहरा
खरगसेन बीहोलिया, सुनी राइकी बात । निज मातासौं मंत्र करि, चले निकसि परभात ॥ ५२ ॥ माता किछु खरची दई, नाना जानै नांहि । ले घोरा वार होइ, गए राइजी पांहि ॥ ५३॥ जाइ राइजीको मिल्यौ, कह्यौ सकल बिरतंत । करी दिलासा बहुत तिन, धरी बात उर अंत ॥ ५४ ॥ एक दिवस काह समै, मनमैं सोचि बिचारि।
खरगसेनकौं रायनें, दिए परगने च्यारि ॥ ५५ ॥ - १ अ व्युतपन्न । २ अ उदम, ब ड उद्दिम। ३ अ पंचसै । ४ स. भाग्यपयोग, ड भागपयोग । ५ ब कर बिस्वास ।
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