________________
दक्खन बिंध्याचल सरहद्द । उत्तर परमित घाघर नद्द ॥ इतनी भूमि राज विख्यात । बरिस तीनिसैकी यह बात ॥ ३६ ।। हुते पुब्ब पुरखा परधान । तिनके बचन सुने हम कान ॥ बरनी कथा जथात जेम । मृषा-दोष नहिं लागै एम ॥ ३७ ।।
यह सव बरनन पाछिलौ, भयौ सुकाल बितीत । सोरहसै तेरै अधिक, समै कथा सुनु मीत ॥ ३८ ॥ नगर जौनपुरमैं बसै, मदनसिंघ श्रीमाल । जैनी गोत चिनालिया, वनजै हीरा-लाल ॥ ३९ ॥ मदन जौहरीकौ सदनु, ढूंढ़त बृझत लोग । खरगसेन मातासहित, आए करम-संजोग ॥ ४०॥ छजमलं नाना सेनकौ, ताकौ अग्रंज एह । दीनौ आदर अधिक तिन', कीनौ अधिक सनेह ॥४१॥
चौपई मदन कहै पुत्री सुनु एम । तुमहिं अवस्था व्यापी केम ॥ कहै सुता पूरब बिरतंत । एहि बिधि मुए पुत्र अर कंत ॥ ४२ ॥ सरबस लूटि लियो ज्यौं मीर । सो सब बात कही धरि धीर ।। कहै मदन पुत्रीसौं रोइ । एक पुत्रसौं सब किछु होइ ॥४३॥ पुत्री सोच न करु मनमांह । सुख-दुख दोऊ फिरती छांह ॥ सुता दोहिता कंठ लगाइ । लिए बस्त्र भूखन पहिराइ॥४४॥ सुखसौं रहहि न ब्यापै काल । जैसा घर तैसी ननसाल ॥ बरिस तीनि बीते इह भांति । दिन दिन प्रीति रीति सुख सांति ।।४५
१अ ड दच्छिन। २ स राजु । ३ अ गजमल । ४ अ प्रतिके हासियेमें इस शब्दका अर्थ 'खरगसेन' लिखा है। ५ अ ड भाई। ६ ई तिस ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org