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________________ खरगसेन सुत माता साथ । सोक-बिआकुल भए अनाथ ॥ मुगल गयौ थो काहू गांउ । यह सब बात सुनी तिस ठांउ॥२१ दोहरा आयौ मुगल उतावलो, सुनि मूलाको काल । . मुहर-छाप घर खालसै, कीनौ लीनौ माल ।। २२ माता पुत्र भए दुखी, कीनौ बहुत कलेस । ज्यौं त्यौं करि दुख देखते, आए पूरब देस ॥ २३ चौपई पूरबदेस जौनपुर गांउ । बस गोमती-तीर सुठांउ । तहां गोमती इहि विध बहै। ज्यौं देखी त्यौं कविजन कहै ॥ २४ दोहरा प्रथम हि दैक्खनमुख बही, पूरब मुख परबाह । बहुरों उत्तरमुख वही, गोवै नदी अथाह ॥ २५ गोवै नदी त्रिविधिमुख बही । तट खनीक सुविस्तर मही । कुल पठान जौनासह नांउ । तिन तहां आइ बसायो गांउ ॥२६ कुतबा पढ्यौ छत्र सिर तानि । बैठि तखत फेरी निज आनि ! तब तिन तखत जौनपुर नांउ। दीनौ भयौ अचल सो गांउ ।। २७ चारौं बरन बसैं तिस बीच । बसहिं छतीस पौंनि कुल नीच ; बांभन छत्री बैस अपार । मृद्र भेद छत्तीस प्रकार ॥ २८ छत्तीस पौन कथन । सवैया इकतीसा सीसगर, दरजी, तंबोली, रंगवाल, ग्वाल, ___ बाई, संगतरास, तेली, धोबी, धुनियां । . १ ब स ई हो। २ स कर । ३ ड दछिन, अ दक्षिन । ४ ब फिरकर, ई फिरकै । ५ अ गोवइ । ६ व रमनीक, ई रमणीक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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