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________________ मूलदास जिनदासके, भयौ पुत्र परधान । पढ़यौ हिंदुंगी पारसी, भागवान बलवान ॥१३॥ मृलदास बीहोलिआ, बनिक वृत्तिके भेस । मोदी कै मुगलको, आयौं मालवदेस ॥ १४ ॥ ___ चौपई मालवदेस परम सुखधाम । नरवर नाम नगर अभिराम । तहां मुगल पाई जागीर । साहि हिमाऊंको बरै बीर ॥ १५॥ मूलदाससौं बहुत कृपाल । करै उचापति सौंपै माल । संबत सोलहसै जब जान । आठ बरस अधिके परबान ॥१६॥ सावन सित पंचमि रबिबार । मूलदास-घर सुत अवतार । भयौ हरख खरचे बहु दाम । खरगसेन दीनौं यह नाम ॥ १७ सुखसौं बरस दोइ चलि गए । घनमल नाम और सुत भए । बरस तीन जब बीते और । धनमल काल कियौ तिस ठौर ॥१८ दोहरा घनमल घन-दल उड़ि गए, काल-पवन-संजोग । मात-तात तरुवर तए, लहि आतप सुत-सोग ।। १९ चौपई लघु-सुत-सोक कियौ असराल । मृलदास भी कीनौं काल ॥ तेरहोत्तरे संबत बीच । पिता-पुत्रकों आई मीच ।। २० १ई हैकर। २ ड आया। ३ अ प्रतिके हासियेपर इस शब्दका अर्थ 'उमराव' दिया है। ४ ब पांचैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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