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________________ 'प्रीतिसी न पाती कोऊ' । कोई कहते हैं पहले सुन्दरदासजीने पिछला छन्द भेजा था। कुछ हो इनका आपसमें प्रेम था और दोनोंकी काव्यरचनामें शब्द, वाक्य और विचारोंका साम्य स्पष्ट है । ये दोनों महात्मा आगरे कब मिले इसका पता नहीं है। हमको महन्त गंगारामजीसे तथा झुंझणूके श्रीमाल सेठ अमोलकचन्दजीसे यह कथा ज्ञात हुई थी।" इस किंवदन्तीमें जिन पद्योंको एक दूसरेके पास भेजनेके लिए कहा गया है, उन पद्योंसे तो ऐसी कोई बात ध्वनित नहीं होती, जिससे उसे सच माननेकी प्रवृत्ति हो सके । इस तरह के तो अनेक पद्य अनेक कवियोंकी रचनाओंमें मिलते हैं, परन्तु उससे यह नहीं माना जा सकता कि रचयिताओंने उन्हें एक दूसरेके पास भेजने के उद्देश्यसे लिखा था। ये तीनों चारों पद्य जिन ग्रन्थोंके हैं उनमें वे अपने अपने स्थानपर सर्वथा उपयुक्त और प्रकरणके अनुकूल हैं, वहाँसे वे हटाये नहीं जा सकते । सन्त सुन्दरदासजीका जन्म-काल वि० सं० १६५३ और मृत्यु-काल १७४६ है और अन्यरचना-काल १६६४ से १७४२ तक माना जाता है, इसलिए बनारसीदासजीसे उनकी मुलाकात होना सम्भव तो है परन्तु जब तक कोई और प्रमाण न मिले तब तक इसे एक किवदन्तीसे अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता। - नाथूराम प्रेमी १- प्रीतिसी न पाती कोऊ प्रेमसे न फूल और, . चित्तसौ न चंदन सनेहसौ न सेहरा। हृदैसौ न आसन सहजसौ न सिंघासन; __ भावसी न सौंज और सून्यसौ न गेहरा ।। सीलसौ सनान नाहिं ध्यानसौ न धूप और, ग्यानसौ न दीपक अग्यान तमकेहरा । मनसी न माला कोऊ सोहंसौ न जाप और, आतमासौ देव नाहिं देहसौ न देहरा ।। १७ -सांख्यको अंग पृ० ५९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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