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________________ - इसी अध्यात्मपदपंक्तिका १० वाँ गीत 'राग वरवा' या बरवा छंद है, जिसका उल्लेख अर्द्ध कथामें न होनेसे डा० गुप्तने यह कल्पना की है कि " यह असंभव नहीं कि 'बारह ' 'बारव' या 'वरवा' का ही विकृत पाठ हो।" अर्थात् ' बारह व्रतके किए कवित्त ' से मतलब 'बरवा छंद' ही हो। . ___ हमारा विश्वास है कि बनारसीविलासका जो संग्रह दीवान जगजीवनने किया है उसमें बनारसीदासजीकी सभी रचनाएँ आगई हैं और यह संग्रह उनकी मृत्युके २५ दिन बाद ही कर लिया गया था। जगजीवन बनारसीदासजीकी अध्यातम-सैलीके ही एक प्रतिष्ठित सभ्य थे और आगरेमें ही रहते थे । मृत्युके कुछ ही समय पहले सं० १७०० की 'कर्मप्रकृतिविधान' रचना भी उन्होंने इसमें शामिल कर ली है जिसका उल्लेख अर्घकथानकमें भी नहीं है । क्योंकि अर्घकथानक उससे पहले ही सं० १६९८ में लिखा जा चुका था और उसमें कविवरने अपनी सारी रचनाओंके समयक्रमसे कि वे कब कब रची गई नाम दे दिये हैं और वे सभी बनारसीविलासमें संग्रह हो गई हैं। अर्घ-कथानककी तिथियाँ डा० माताप्रासादजी गुप्तने अर्ध-कथानकमें आई हुई चार तिथियोंकी नाच की है कि वे शुद्ध हैं या नहीं १ खरगसेनकी जन्मतिथि - श्रावण सुदी ५, रविवार, वि० सं० १६०८। २ बनारसीदासकी जन्मतिथि-माघसुदी ११, रविवार, सं० १६४३, तृतीय चरण रोहिणी तथा वृषके चन्द्रमा । ३ नरोत्तमदासके साझेकी समाप्ति-वैशाख सुदी ७, सोमवार, सं० १६७३ । ४ अर्घ-कथानककी रचनातिथि --अगहन सुदी ५. सोमवार, सं० १६९८ । वे लिखते हैं कि गतवर्ष-प्रणालीपर गणना करनेसे प्रथमके लिए दिन बुधवार, दूसरेके लिए मंगलवार, तीसरेके लिए शनिवार और चौथेके लिए पुनः शनिवार १-" एकादमी बार रविनंद, नखत रोहिनी वृषको चंद ।" यह पाठ सब प्रतियों में है, केवल ब प्रतिमें 'एकादसी रविवार सुनन्द' पाठ है और शायद इसी प्रतिके आधारसे डा० सा० द्वारा सम्पादित 'अर्द्धकथा' का पाठ छपा है। रविनन्द-सूर्यपुत्रका अर्थ शनिवार होता है, रविवार नहीं । ब प्रतिकेके पाठका 'सुनन्द' निरर्थक भी पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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