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________________ - इसी तरह 'अतीतव्यवहारकथन' नामकी भी कोई अलग रचना नहीं है। अर्द्धकथाकी वह पंक्ति इस प्रकार है - की. अध्यातमके गीत, बहुत कथन विवहार अतीत । सिवमंदिर इत्यादिक और, कवित अनेक किए तिस ठौर ॥ ५९७ __ अर्थात् ग्यान पचीसी, ध्यान बनीसी आदि के बाद अध्यात्मके गीत बनाये, जिनमें अधिकांश कथन व्यवहारसे अतीत है, अर्थात् निश्चय दृष्टिसे है। हमारी ममझमें बनारसीविलासकी 'यात्मपदपंक्ति' ही अध्यातमके गीत हैं और उन गीतोंमें अधिकांश कथन व्यवहार से अतीत अर्थात् निश्चय नयसे है। ____ आगे कहा है - बरनी आंखें दोइ विधि, करी बचनिका दोइ ।। . . अष्टक गीत बहुत किए, कहाँ कहालौं सोइ ।। ६२८ यहाँ ' आंखे दोइ बिधि' नामको रचनाका जो संकेत है वह उक्त अध्यात्मपदपंक्तिके १८ वें और १९ वें पद ( राग गौरी) के लिए है और इस नामकी कोई अन्य रचना नहीं है। १८ वें की कुछ पंक्तियाँ ये हैं --.. भादू भाई, समुझ सबद यह मेरा जो तू देखै इन आंखिनसी, तामै कछु न तेरा ॥ ? एं आंखें भ्रमहीसौं उपजी, भ्रमहीके रस पागी । जहं जह भ्रम तहं तहे इनको श्रन, तू इनहीको रागी !! २ खुले पलक ए कछु इक देखें, मुंदे पलक नहि सोऊ । कबहू लाहि हाँहि फिर कबहूं, भ्रारक आबै दोऊ ॥६ और १९ वें की कुछ पंक्तियों ये हैं ---- भौंदू गई, ते हिरदेको मन । जे कर अपनी मुरब पति, नाकी संपति नावें !! १ जे चांसें अम्रा रस बरग्वें, पर केवलिबानी । जि.: आंखिन बिलोकि परमारध, होहि कृतारथ प्रानी ॥ ८ अर्थात् अर्ध-कथानक, जो 'आंखें दोइ बिधि' के रचनेका उल्लेख है वह इन्हीं दो पदोंके उद्देश्यसे है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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