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________________ ५ नवरसरचना यह पोथी सं० १६५७ में लिखी गई थी जब कि कविकी अवस्था चौदह वर्षकी थी । " पोथी एक बनाई नई, मित हजार दोहा चौपई । तामैं नवरसरचना लिखी, पै बिसेस बरनन आसिखी । ऐसे कुकवि बनारसी भए । मिथ्या ग्रंथ बनाए नए ॥ १७९ - अर्थात् इस पोथी में इश्क ( प्रेम-मुहब्बत ) का विशेष वर्णन था । विरक्ति हो जानेपर सं० १६६२ में जब इसे गोमती नदीमें बहा दिया गया, तब लिखा है कि " मैं तो कलपित वचन अनेक | कहे झूठ सब साचु न एक || २६६ "" एक झूठ बोलनेवालेको नरकदुःख भोगना पड़ता है, पर मैंने तो इसमें अनेक कल्पित वचन लिखे हैं जो सब ही झूठ हैं, तब मेरी बात कैसी बनेगी ? उक्त लेखके सम्बन्धमें असंभव नहीं कहा जा सकता । इसपर हमारा निवेदन है कि स्वयं कवि गणनाकी ऐसी भूल नहीं कर सकते। उन्होंने अपने दूसरे ग्रन्थ नाटक समयसार में भी छन्दोंकी संख्या ७२७ दी है और वह उतनी ही है । ग्रन्थकी प्रतिलिपि करनेवालेने ही १३ छन्द छोड़ दिये हैं । रही वस्तुविकासमें कोई व्यवधान उपस्थित न होनेकी बात, सो बारीकीसे विचार करनेसे व्यवधान साफ नज़र में आ जाते हैं । ३९१ वें छन्दमें कहा है कि बहुत उपाय रने पर भी मन्दा कपड़ा जब नहीं बिका, तत्र कवि एकाएक ऐसा विचार कैसे कर सकता है कि जवाहरातका व्यापार अच्छा है । छूटे हुए ३९२-९३ छन्दमें कहा है कि मोतीहार जो ४२ रुपयों में खरीदा था, वह ७० में विका और उसमें पौनदूने हो गये, इस लिए जवाहरातका धंदा अच्छा । इसी तरह ५५८ वें छन्दके बाद एकाएक तीसरे दिन अंगनदासका सबलसिह के पास जाना भी बतलाता है। कि बीचमें बहुत कुछ रह गया है । ६२१ के बाद सं० ९१ और ९२ संवत्की बात कहनेवाले दो छन्द छूटे हुए हैं, जिनका छूटना पकड़ में आ सकता है, इसी तरह ६७० वें छन्द के बाद ' ताके मन आई यह बात' में ' ताके ' का सम्बन्ध तभी बैठ सकता है जब बीचमें ६७१ वाँ छन्द हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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