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________________ उधवा गाइ सुनाए हु चेतन चेत ! कहत बनारसि थान नरोत्तम हेत ॥ २६ प्रारंभ इस प्रकार किया है संवरौं सारदसामिनि औ गुरु 'भान'। कछु बलमा परमारथ करौं बखान ।। बालम० ४ काय नगरिया भीतर चेतन भूप । करम लेप लिपटाएल, जोतिसरूप ॥ बालम० २१ वें पद 'राग काफी' में आगरेके 'चिन्तामन स्वामी' की मूर्तिकी चिंतामन स्वामी सांचा साहब मेरा । शोक हरै तिहु लोकको, उठि लीजतु नाम सबेरा | चि. बिंब बिराजत आगरे, थिर थान थयौ शुभ बैरा । ध्यान धरै बिनती करै, बानारसि बंदा तेरा । चि. ४७-४८ परमारथ हिंडोलना और राग मलार तथा सोरठवास्तवमें ये भी दोनों पद ही हैं, परन्तु पदपंक्तिमें शामिल नहीं किये गये, अलग रखे गये हैं । अन्य पदोंके ही समान ये हैं । इस तरह बनारसीविलासकी समस्त रचनाओंका संक्षिप्त परिचय दिया गया ! पाठक देखेंगे कि इसमें कविको ठीक ठीक समझनेके लिए काफी . १-अबसे ५२ वर्ष पहले सन् १९०५ में मैंने इसे सम्पादित करके और विस्तृत भूमिका लिखकर जैनग्रन्थरत्नाकरद्वारा प्रकाशित किया था । यद्यपि परिश्रम बहुत किया था, परन्तु साधनोंकी कमीसे, एक ही हस्तलिखित प्रतिका आधार मिलनेसे और पुरानी भाषाका ठीक ज्ञान न होंगेसे वह बहुत ही त्रुटिपूर्ण रहा। उसके पचास वर्ष बाद सन् १९५५ में जब यह जयपुरसे प्रकाशित हुआ, तो देखा कि मेरे उस पहले संस्करणको ही प्रेसमें देकर छपा लिया गया है, दूसरी प्रतियोंके सुलभ होनेपर भी उनका उपयोग नहीं किया गया और उसमें पहलेसे भी अधिक अशुद्धियाँ और त्रुटियाँ भर गई हैं । इससे बड़ा दुःख हुआ। अब भी इसका एक प्रामाणिक संस्करण शीघ्र ही प्रकाशित होनेकी 'आवश्यकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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