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४४ परमार्थ वचनिका-यह लगभग ९ पृष्ठोंका गद्यलेख है। इससे बनारसीदासजीकी, गद्यरचनाशैलीका पता लगता है। यह पं० राजमलजीकी समयसारकी बालबोधिनी गद्यटीकाके लगभग पचास वर्ष बादकी रचना है । वालबोधिनीके गद्यके नमूनें हमने अन्यत्र दिये हैं । भाषाशास्त्रियोंके अध्ययनमें ये दोनों सहायक होंगे। देखिए__ " मिथ्यादृष्टी जीव अपनी स्वरूप नहीं जानती तातै पर-स्वरूपबिषै मगन होइ करि कार्य मानतु है, ता कार्य करतौ छतौ अशुद्ध व्यवहारी कहिए । सम्यग्दृष्टि अपनी स्वरूप परोक्ष प्रमानकरि अनुभवतु है। परसत्ता परस्वरूपसौं अपनी कार्य नहीं मानतौ संतौ जोगद्वारकरि अपने स्वरूपको ध्यान विचाररूप क्रिया करतु है ता कार्य करतौ मिश्रव्यवहारी कहिए । केवलज्ञानी यथाख्यात चारित्रके बलकरि शुद्धात्मस्वरूपको रमनशील है तातें शुद्ध व्यवहारी कहिए, जोगारूढ अवस्था विद्यमान है तातै व्यवहारी नाम कहिए । शुद्ध व्यवहारकी सरहद्द त्रयोदशम गुणस्थानकसौं लेइ करि चतुर्दशम गुणस्थानकपर्यंत जाननी। असिद्धत्वपरिणमनत्वात् व्यवहारः।”
" इन बातनको ब्यौरो कहांताई लिखिए, कहां ताई कहिए । वचनानीत इन्द्रियातीत ज्ञानातीत, तात यह विचार बहुत कहा लिखहिं । जो म्याता होइगो सो थोरो ही लिस्यौ बहुत करि समुझेगो, जो अग्यानी होइगो सो यह चिट्ठी सुनैगो सही परन्तु समुझेगो नहीं । यह वचनिका यथाका यथा सुमति प्रवांन केबली वचनानुसारी है । जो याहि सुनैगो समुझेगो सरद हैगो ताहि कल्याणकारी है भाग्यप्रमाण"।
जान पड़ता है यह वचनिका चिट्ठीके रूपमें लिखकर कहींको भेजी गई थी। ४५ उपादान निमित्तकी चिट्ठी-यह भी गद्यमें लिखी हुई है और छपे हुए ६-७ पृष्ठोंकी है । कुछ अंश देखिए__“प्रथम ही कोज पूछत है कि निमित्त कहा उपादान कहा, ताकौ ब्यौरीनिमित्त तो संयोगरूप कारण, उपादान वस्तुकी सहनशक्ति, ताको ब्योरौ-एक द्रव्यार्थिक निमित्त उपादान, एक पर्यायाथिक निमित्त उपादान, ताको ब्यौरोद्रव्यार्थिक निमित्त उपादान एक पर्यायार्थिक निमित्त उपादान, ताको ब्योरो
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