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४२ गोरखनाथके वचन - इसकी प्रत्येक चौपाईके अन्तमें 'कह गोरख' 'गोरख बोलें' कहकर सन्तों जैसी अटपटी बातें कहीं हैं। देखिए
जो भग देख भामिनी मान, लिंग देख जो पुरष प्रमानै । जो बिन चिन्ह नपुंसक जोवा, कह गोरख तीनों घर खोवा ॥१ जो घर त्याग कहावै जोगी, धरवासीको कहै जो भोगी । अंतर भाव न परखै जोई, गोरख बोले मूरख सोई ॥२ माया जोर कहै मैं ठाकर, माया : कहावै चाकर । माया त्याग होइ जो दानी, कह गोरख तीनों अग्याना र
सिंहाने चला ! कठिन पिंड सो ठेलापेला । जूना पिंड कहावै बूढा, कह गोरख ये तीनों मूढा ।। ५ सुन रे बाचा चुनियां मुनियां, उलट बेधसौं उलटी दुनियां । सतगुरु कहें सहजका धंधा, वादविवाद करै सो अंधा ।। ७ ४३ वैद्य लक्षणादि कविता-इसमें ४१ पद्य हैं । पहले वैद्य, ज्योतिषी, वैष्णव, मुसलमान गहव्वर, आदिके लक्षण कहे हैं । मुसलमानके लक्षणमें कहा है
जो मन मूसै आपनौ, साहिबके रुख होइ । ग्यान मुसल्ला गह टिकै, मुसलमान है सोइ ॥ एकरूप हिन्दू तुरुक, दूजी दसा न कोइ । मनकी मुबिधा मगनकर, भए एकसौं दोइ । दोऊ भूले भरममैं, करै बचनका टेक । राम राम हिंदू कहैं, तुर्क सामालेक ।। इनके पुस्तक गंचिए, बेहू पढ़ें कितेत्र । एक बस्तुके नाम दो, जसै शोभा जेब ।। तनकौं दुविधा, जे लखें, रंग बिरंगी चाम । मेरे नैननि देखिए, घट घट अंतरराम ॥ यहै गुपत यह है प्रगट, यह बाहर यह पाहि ।
जर लगि यह नछु है रह्या, तब लगि यह कछु नांहि ॥ ११ आगे ३० दोहोंमें अध्यात्मभावके सुन्दर सुभाषित हैं ।
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