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“खैराबादमंडन' विशेषण दिया है । खैराबादके श्वेताम्बर मन्दिरकी यह मुख्य मुख्य प्रतिमा होगी। इसके प्रारम्भमें उन्होंने सुगुरु भानुचन्द्रका स्मरण भी किया है जो खरतरगच्छके थे । - ३७ शांतिनाथस्तुति-कविकी यह प्रारंभकी रचना जान पड़ता है। पहली दो ढालोंमें 'नरोत्तमको प्रभु' कहकर अपने मित्र नरोत्तम खोबराको स्तुतिमें शामिल किया है।
सकल सुरेस नरेस अरु, किन्नरेस नागेस ।
तिनि गन वंदित चरन जुग, बन्दू सांति जिनेस || आदि । ३८ नवसेना विधान -- इसमें पत्ति, सेना, सेनामुख, अनीकिनी, वाहिनी, चन, वरूथिनी, दंड और अक्षोहिणी सेनाके इन नौ भेदोंकी शास्त्रोक्त गणना बतलाई है कि किसमें कितने घोड़े, रथ, हाथी, सुभट और पायक रहते हैं ।
३९ नाटकसमयसारके कवित-इसमें पहला ८६ वें संस्कृतकलशका दूसरा १०४ वें कलशका अनुवाद है, तीसरा चौथा पद्य किन कसोका अनुवाद है, पता नहीं।
४० मिथ्यामत वाणी-तीन कवित्तोंमें कहा है कि नारायणको परनारी-रत बतलाना, ब्रह्माको निज कन्यासे ब्याह करनेवाला, द्रौपदीको पंचभरतारी कहना यह सब मिथ्या है। - ४१ फुटकर कविता-इसमें १० इकतीसा कवित्त, ३ सवैया, ३ छप्पय १ वस्तुछन्द और ५ दोहे हैं । अर्धकथानकका २९ वाँ कवित्त छत्तीस पौनका
और ६२ वाँ सवैया 'पुण्यसंजोग जुरै रथपायक' आदि शामिल कर लिया गया है ! ११ वें छपय छन्दमें होंग, मोम, लाब, मधु, मादक द्रव्य, नील आदिका व्यापार न करनेकी कहा है । १२ वे कवित्तमें मोती, मूंगा, गोमेदक आदि रत्नों के नाम हैं । १४ वें छप्पयमें चौदह विद्याओंके नाम हैं । १६ वें वस्तु छन्दमें कर्मकी एक सौ अड़तालीस प्रकृतियोंके नाम हैं।
१-बाबू कामताप्रसादजी जैनके संग्रह में एक गुटका है जिसमें 'खैराबादपाश्व-जिनस्तुति' नामकी एक रचना है जिसे खरतरगच्छके पं० शान्तिरंगगणिने वि० सं० २६२६ में रचा था। इससे भी अनुमान होता है कि खैराबादमें कोई श्वेताम्बर मन्दिर था।
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