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________________ ७४ मलिन वस्तु उजल करै, यह सुभाव जलमांहि । जलसौं जिनपद पूजत, कृतकलंक मिटि जांहि ॥ २ २८ दस दान विधान-गो, सुवर्ण, दासी, भवन, गज, तुरंग, कुलकलत्र, तिल, भूमि, और रथ इन चीजोंके लोकप्रचलित दानोंका आध्यात्मिक अर्थ समझाया है । गजदान यथा अष्ट महामद धुरके साथी, ए कुकर्म कुदशाके हाथी । इनको त्याग करै जो कोई, गजदातार कहावै सोई ॥ ७ सवत्स गोदान यथा गो कहिए इंद्रिय अभिधाना, बछरा उमंग भोग पयपाना । जो इसके रसमांहि न राचा, सो सबच्छ गोदानी सांचा ॥ ३ २९ दस बोल-दस दोहोंमें जिन, जिनपद, धर्म, जिनधर्म, जिनागम, वचन, जिनवचन, मत और जिनमतका स्वरूप कहा है । मतके विषयमें यथा ~~ थापै निजमतकी क्रिया, निंदै परमतरीत । कुलाचारसौं बंधि रहै, यह मतकी परतीत ॥ १० ३० पहेली- यह कहरा नामाकी चालमें कुमति सुमति नामक दो वजनारियोंके बीच उपस्थित की गई पहेली है जिनका पति अवाची है - कुमति सुमति दोऊ ब्रजवनिता, दोउको कंत अवाची । वह अजान पति मरम न जानै, यह भरतासौं राची ।। १ यह सुबुद्धि आपा परिपूरन, आपा-पर पहिचान। लखि लालनकी चाल चपलता, सौत साल उर आने ।। २ करै बिलास हास कौतूहल, अगमित संग सहेली । काहू समै पाइ सखियनसों, कहै पुनीत पहेली ॥३ ३१ प्रश्नोत्तर दोहा-इसमें पाँच प्रश्न और पाँच ही उनके उत्तर दिये हैं। यथा-~प्रश्न - कौन वस्तु बपुमांहि है, कहाँ आवै कहाँ जाइ । ग्यानप्रकार कहा लखें, कौन ठौर ठहराइ । उत्तर- चिदानंद बपुमांहि है, भ्रममै आवै जाइ । ग्यान प्रगट आपा लखै, आपमांहि ठहराइ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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