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२३ शारदाष्टक-आठ भुजंगप्रयात छन्दोंमें सत्यार्थ शारदाकी विविध नाम देकर स्तुति की है
जिनादेशजाता जिनेंद्रा विख्याता, विशुद्धा प्रबुद्धा नमों लोकमाता ।
दुगचार दुनैहरा शंकरानी, नमों देवि वागेश्वरी जैनबानी ॥२ २४ नवदुर्गाविधान - शीतला, चंडी, कामाख्या, जोगमाया आदि नौ दुर्गाओंको सुमतिदेवी के रूपमें नौ कवित्तोंमें घटाया है ----
यहै परमेश्वरी परम रिद्धिसिद्धि साथै, यहै जोगमाया व्यवहार ढार ढरनी । यहै पदमावती पदम ज्यों अलेप रहै, यहै शुद्ध सकति मिथ्यातकी कतरनी । यहै जिनमहिमा बखानी जिनशासनमैं, यहै अखंडित शिवमहिमा अमरनी। यहै रसभोगिनो वियोगमैं वियोगिनी है, यहै देवी सुमति अनेक भांति बरनी ॥९
२५ नामनिर्णयविधान-इसके ११ पद्योंमें नामकी अस्थिरता और भ्रमको बड़े अच्छे ढंगसे व्यक्त किया है --- जगतमें एक एक जनके अनेक नाम, एक एक नाम देखिए अनेक जनमैं । या जनम और वा जनम और आगें और, फिरता रहै पै याकी थिरता न तनमैं ।। कोई कलपना कर जोई नाम धरै जाकौ, सोई जीव सोई नाम मानै तिहू पनमैं । ऐसो बिरतंत लखि संतसा सुगुरु कहैं, तेरो नाम भ्रम तू विचार देखि मनमैं ॥७
२६ नवरत्न कवित्त-नौ छप्पय छन्दोंमें नौ सुभाषित हैं और उन्हें अमर, घटकर्पर, बेताल, वररुचि, शंकु, वराहमिहिर, कालिदासके समान नौ रत्न बतलाया है। एक सुभाषित यह है-.
ग्यानवंत हठ गहै, निधन परिवार बढ़ावै । विधवा करै गुमान, धनी सेवक है धावै ।। वृद्ध न समुझे धरम, नारि भरता अवमान ।
पंडित क्रियाविहीन, गह दुरबुद्धि प्रमानै ।। कुलवंत पुरुष कुलविधि तजे, बंधु न मान बंधुहित । संन्यास धारि धन संग्रहै, ये जगमैं मूरख विदित ॥ ११ २७ अष्टप्रकारी जिनपूजा--जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल और अर्घरूप आठ प्रकारकी पूजा किस फलकी आशासे की जाती है, सो दस दोहोंमें बतलाया है--
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