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________________ १८ सोलह तिथि-इसमें पड़िवा ( प्रतिपदा), दूज, तीज आदिसे लेकर प्पूनो तककी तिथियोंका अर्थ परमार्थ दृष्टिसे बतलाया है परिबा प्रथम कला घट जागी, परम प्रतीत रीत रस पागी । प्रतिपद परम प्रीत उपजावे, वहै प्रतिपदा नाम कहावै ॥१ आ आठ महामद भंजे, अष्टसिद्धिरतिसौं नहिं रंजै । अष्ट करममल मूल बहावे, अष्टगुणातम सिद्ध कहावै ॥ ८ १९ तेरह काठिया- इसके प्रारंभमें कहा है.... जे बटपारे बाटमैं, करें उपद्रव जोर ।। तिन्हें देस गुजरातमैं, कहैं काठिया चोर । त्यौं ए. तेरह काठिया, करें धरमकी हान, तातें कछु इनकी कथा, कहीं बिसेस बखान ।। फिर जुआ, आलस, शोक, भय, कुकथा, कौतुक, क्रोध, कृपणता, अज्ञान, भ्रम, निद्रा, मद और मोहको चोर बतलाकर कहा है-.. एही तेरह करम ठग, लेहिं रतनत्रय छीन । याते संसारी दशा, कहिए तेरह तीन । २० अध्यातम गीत-यह गीत राग गौरीमें है। इसकी टेक है, " मेरे मनका प्यारा जो मिलै, मेरा सहज सनेही जो मिलै ।" सुमतिरूप सीता आतम रामसे कहती है --- मैं बिरहिन पियके आधीन, यौं तुलफौं ज्यों जलबिन मीन ॥ मेरा० ३ बाहर देखू तो पिय दूर, घट देखू घटमैं भरपूर ॥ मेरा० ४ मैं जग ढूँढ़ फिरी सब ठौर, पियके पटतर रूप न और ।। ११ पिय जगनायक पिय जगसार, पियकी महिमा अगम अपार ॥ १२ । २१ पंचपदविधान-दो दोहों और १० चौपई छन्दोंमें अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधुका साधारण वर्णन है । २२ सुमतिदेवीके अष्टोत्तरशत नाम-पाँच रोड़ा और एक घत्तामें सुमतिदेवीके १०८ नाम दिये हैं---सुमति, सुबुद्धि, सुधी, सुबोधनिधिसुता, शेमुषी, स्याद्वादिनी, आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001851
Book TitleArddha Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarasidas
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year1987
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size13 MB
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