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________________ तत्त्वानुशासन शक्त्यनुसार तप धारणीय चरितारो न चेत्सन्ति यथाख्यातस्य संप्रति । तत्किमन्ये यथाशक्तिमाचरन्तु तपस्विनः ॥ ८६ ॥ अर्थ-यदि इस पंचमकाल में यथाख्यातचारित्र के परिपालन करने वाले नहीं पाये जाते हैं, तो क्या अन्य तपस्वी गण अपनी शक्ति के अनुसार अन्य चारित्र का आचरण नहीं करें ? नहीं, उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार, यथाख्यातचारित्र से अतिरिक्त चारित्रों का आचरण करना चाहिये ।। ८६ ।। विशेष-संसारकारणनिवृत्तिप्रत्यागूर्णस्य ज्ञानवतः कर्मादाननिमित्तक्रियोपरमः सम्यक्चारित्रम् । -सर्वार्थसिद्धि जो ज्ञानी पुरुष संसार के कारणों को दूर करने के उद्यत हैं उसके कर्मों के ग्रहण करने निमित्तभूत क्रिया के त्याग को सम्यक्चारित्र कहते हैं। -सर्वार्थसिद्धि २ सूत्र असहादो विणिवित्ती सहे पवित्ती य जाण चारित्तं । वदसमिदिगुत्तिरूवं ववहारणया दु जिणभणियं ॥ ४५ ॥ -द्रव्यसंग्रह जो अशुभ (बुरे) कार्य से दूर होना और शुभ कार्य में प्रवृत्त होना अर्थात् लगना है उसको चारित्र जानना चाहिये। श्री जिनेन्द्रदेव ने व्यवहारनय से उस चारित्र को ५ व्रत, ५ समिति और ३ गुप्तिस्वरूप कहा है। ___सामायिकछेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातमिति चारित्रम् । -त० सू० ९ अ० १८ सू० सामान्यपने से एक प्रकार चारित्र है अर्थात् चाहित्रमोह के उपशम क्षय व क्षयोपशम से होनेवाली आत्म विशुद्धि की दृष्टि से चारित्र एक है। बाह्य व अभ्यन्तर निवृत्ति अथवा व्यवहार व निश्चय को अपेक्षा दो प्रकार का है। या प्राण संयम व इन्द्रिय संयम की अपेक्षा दो प्रकार का है । औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक के भेद से तीन प्रकार का है अथवा उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य विशुद्धि के भेद से तीन प्रकार का है। चार प्रकार के यति की दृष्टि से या चतुर्यम की अपेक्षा चार प्रकार का है, अथवा छद्मस्थों का सराग और वीतराग तथा सर्वज्ञों का सयोग और अयोग इस तरह ४ प्रकार का है। सामायिक, छेदोपस्थापना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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