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________________ ३५ तत्त्वानुशासन विशेष-वैराग्यं तत्त्वविज्ञानं नैर्ग्रन्थ्यं समचित्तता । परीषहजयश्चेति पञ्चैते ध्यानहेतवः ।। -क्षत्रचूड़ामणि क्षत्रचूड़ामणि ग्रन्थ में आचार्यश्री ने ध्यान की सामग्री बताते हए ध्याता के मुख्य चिह्न बताये हैं-वैराग्य, तत्त्वों का ज्ञान, परिग्रह-त्याग, साम्यभाव और परीषहजय । ___कैमा ध्याता ध्यान योग्य है ? जिनाज्ञा पर श्रद्धान करने वाला, साधु का गुणकीर्तन करने वाला, दान, श्रुत, शील, तप. संयम में तत्पर, प्रसन्ननित्त, प्रेमी, शभयोगी, शास्त्राभ्यासी, स्थिरचित्त, वैराग्यभावना में तत्पर ये सब धर्म्यध्यानी के बाह्य व अन्तरंग चिह्न हैं। शरीर को निरागता, विषय लम्पटता व निष्ठुरता का अभाव, शुभ गन्ध, मल-मूत्र अल्प होना इत्यादि भी ध्याता के बाह्य चिह्न हैं। वज्रवृषभनाराचसंहनन आदि उत्तम संहननधारी निर्ग्रन्थ साधु उत्तम ध्याता हैं। तीन हीन संहनन के धारक निर्ग्रन्थ मुनि मध्यम ध्याता हैं तथा चतुर्थ पञ्चम गणस्थानवर्ती जघन्य ध्याता हैं। उत्तम ध्याता का ध्यान उत्तम होता है तद्भव से मक्ति को प्राप्त कराता है। मध्यम ध्याता का ध्यान सात-आठ भवों में सिद्ध सुख प्राप्त कराता है। तथा जघन्य ध्याता का ध्यान अर्द्धपुद्गल परावर्तन से अधिक भव्यजीव को संसार में रहने नहीं देता। अथवा अति संक्षेप में ध्याता दो प्रकार के हैं-प्रारब्ध योगी और निष्पन्न योगी। शुद्धात्म भावना को प्रारम्भ करने वाले पुरुष सूक्ष्म सविकल्पावस्था में प्रारब्ध योगी कहे जाते हैं और निर्विकल्प शुद्धात्मावस्था में निष्पन्न योगी कहे जाते हैं । ( पं० का०ता• वृ०) उत्तम-मध्यम-जघन्य ध्यान सामग्रीतः प्रकृष्टायाः ध्यातरि ध्यानमुत्तमम् । स्याज्जघन्यं जघन्याया मध्यमायास्तु मध्यमम् ॥ ४९ ॥ अर्थ- उत्तम सामग्री का योग मिलने पर ध्यान करने वाले व्यक्ति में उत्तम दर्जे का ध्यान होता है व जघन्य सामग्री का योग मिलने पर उसी व्यक्ति के जघन्य दर्जे का, व मध्यम दर्जे की सामग्री का सम्पर्क स्थापित होने पर मध्यम दर्जे का ध्यान होता है ॥ ४९ ॥ विशेष ध्यान की उत्पत्ति के कारणभूत द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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