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________________ तत्त्वानुशासन बन्धहेतुविनाशस्तु मोक्षहेतुपरिग्रहात् । परस्परविरुद्धत्वाच्छीतोष्णस्पर्शवत्तयोः ॥ २३ ॥ अर्थ- मोक्ष के कारणों को धारण कर लेने से बन्ध के कारणों का नाश तो हो ही जाता है। क्योंकि उन दोनों में शीतस्पर्श एवं उष्णस्पर्श की तरह परस्पर विरोधीपना है ।। २३ ।। विशेष - प्रस्तुत श्लोक में मोक्ष कारण सम्यक्त्व एवं बन्धकारण मिथ्यात्वादि में शोतस्पर्श एवं उष्णस्पर्श की तरह विरोध बताया गया है । जब जीव मोक्ष के कारणों का आश्रय ले लेता है तो बन्ध के कारणों का नाश हो जाता है । क्योंकि शीतस्पर्श एवं उष्णस्पर्श का एक समय में एकत्र अवस्थान संभव नहीं है । १९ बध्यते मुच्यते जीवः सममो निर्ममः क्रमात् । तस्मात्सर्वप्रयत्नेन निर्ममत्वं विचिन्तयेत् ॥ २६ ॥ इष्टोपदेश परद्रव्य, स्त्री पुत्र कुटुम्ब, मकान आदि मेरे हैं इस प्रकार ममता बुद्धि बन्धका हेतु है और परद्रव्य-परदार्थ इष्ट पत्नी - पुत्र-परिवार आदि मेरे नहीं हैं "निर्ममत्व" बुद्धि मुक्ति का हेतु है । बन्ध और मुक्त अवस्था में " ३६" आँकड़े की तरह परस्पर विरोध है । मुक्ति के कारण स्यात्सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रितयात्मकः मुक्तिहेतुजिनोप निर्जरासंवरक्रियाः ॥ २४ ॥ अर्थ - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष का कारण है । निर्जरा एवं संबर की क्रियायें भी जिनेन्द्र भगवान् द्वारा मोक्ष हेतु कही गईं हैं || २४ ॥ Jain Education International विशेष - ( १ ) तत्त्वार्थ सूत्र में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चरित्र इन तीनों को एकता को मोक्षमार्ग कहा गया है 'सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्गः त० १/१ ।' इन तीनों में साहचर्य सम्बन्ध है । सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान तो एक साथ होते हैं। क्योंकि ज्ञान में सम्यक्त्व सम्यग्दर्शन के निमित्त से आता है । जैसे मेघपटल के दूर होने पर सूर्य का प्रताप और प्रकाश एक साथ व्यक्त होता है । किन्तु सम्यक्चारित्र कभी तो सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान के साथ ही प्रकट होता है और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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