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________________ १२ तत्त्वानुशासन विशेष-मोह व्यूह का सेनापति ममकार है । बाह्य पदार्थ को अपना मानना ममकार कहलाता है। यह मेरा शरीर है, यह मेरी स्त्री है, यह मेरा पुत्र है, यह मेरा भवन है, यह मेरा धन है आदि ममकार के रूप हैं। ममकार के वशीभूत होकर प्राणी यह भूल जाता है कि मेरा तो केवल ज्ञानदर्शन स्वभावी आत्मा है। बाह्य में जो मेरा प्रतीत होने वाला है, वह तो मेरा साथ छोड़ देता है। अतः वास्तव में मेरा आत्मा ही मेरा है। किन्तु ममकार के कारण जीव परपदार्थों में अपना मानने की भूल करता है। बृहद्रव्यसंग्रह के संस्कृत वृत्तिकार श्रीब्रह्मदेव ने ममकार की परिभाषा इस प्रकार दी है-“कर्मजनित देहपुत्रकलत्रादौ ममेदमिति ममकारः।" अर्थात् कर्मजनित देह, पुत्र, स्त्री आदि में 'यह मेरा शरीर है' आदि बुद्धि ममकार है। ( द्रष्टव्य ३/४१ की वृत्ति ) अहंकार का लक्षण ये कर्मकृता भावाः परमार्थनयेन चात्मनो भिन्नाः। तत्रात्माभिनिवेशोऽहंकारोऽहं यथा नृपतिः ॥१५॥ अर्थ-उन विभाव परिणामों में जो कर्मों के द्वारा किये गये हैं तथा निश्चय नय से जो आत्मा से भिन्न हैं, उनमें अपनेपन की भावना करना सो अहंकार बुद्धि है। जैसे "मैं राजा हूँ" ।। १५ ॥ विशेष-मिथ्यात्व के कारण जीव आत्मस्वरूप को भूल गया है और शरीर को 'मैं' मान रहा है। शरीर की प्राप्ति में अपना जन्म और उसके छूट जाने को अपना मरण मानता है। मैं पुरुष हूँ, मैं स्त्री हूँ, मैं अज्ञानी हैं, मैं ज्ञानी हूँ, मैं राजा हूँ, मैं रंक इत्यादि विविध विकल्पों को 'मैं' मानकर अपनी श्रद्धा में रखता है। यह अहङ्कार मोहव्यह की रक्षा करता है तथा 'मैं केवल आत्मा मात्र हूँ' भाव को भुला देता है। ममकार की तरह अहङ्कार भो मोहव्यूह में एक सेनापति कहा गया है। पंडितप्रवर दौलतराम जी ने अहङ्कार एवं ममकार का बड़ा ही रमणीय वर्णन किया है “मैं सुखी दुखी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव । मेरे सुत तिय मैं सबल दोन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीन ।। तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान । रागादि प्रकट ये दुःख दैन, तिन हो को सेवत गिनत चैन ।” -छहढाला २/२०-२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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