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________________ तत्त्वानुशासन ११ अर्थ-बन्ध के सम्पूर्ण कारणों में सबसे प्रथम मोह ( मिथ्यादर्शन ) कहा गया है। मिथ्याज्ञान तो उसका सहायक मात्र है। मिथ्याज्ञान तो इसका सहायक मात्र ही है । ममत्व और अहंकार हैं नाम जिनके ऐसे दो सेनापति हैं, वे दोनों, जिनके कि आधिपत्य में यह मोहरूपी ब्यूह अत्यंत दुर्भद्य हो रहा है उसके लड़के भी हैं। यहाँ पर मोह । मिथ्यादर्शन ) को युद्ध में तत्पर राजा बतला, मिथ्याज्ञान को उसका मंत्री और ममकार एवं अहंकार को उसका पुत्र तथा सेनापति कहा गया है ।। १२-१३ ॥ विशेष-(१) तत्त्वार्थसूत्र में भी बन्ध के जो पाँच कारण परिगणित किये गये हैं, उनमें मिथ्यात्व को ही प्रथम कारण परिगणित किया गया है____ मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ।' ८१ मिथ्यात्व गृहीत एवं अगृहीत के भेद से दो प्रकार का होता है। मिथ्यात्व कर्म के उदय से अनादिकाल से लगा हुआ भ्रम अगृहीत मिथ्यात्व है तथा परोपदेश से होने वाला एकान्त, विपरीत, संशय, वैनयिक और अज्ञान रूप मिथ्यात्व गृहीत कहलाता है। गृहोत मिथ्यात्व को तो जीव अनेक बार छोड़ चुका है परन्तु आत्मस्वरूपोपलब्धि का वास्तविक बाधक तो अगृहीत मिथ्यात्व है, जिसका त्याग अत्यन्त आवश्यक है तथा इसे हो जीव ने अब तक नहीं छोड़ा है । (२) यहाँ कहा गया है कि मोह एक अत्यन्त दुर्भेद्य व्यह है। इस व्यूह के दो सेनापति हैं-ममकार और अहंकार । मिथ्याज्ञान दुर्मन्त्रणा करने वाला मन्त्री है । यदि कोई मोह व्यू ह को तोड़ना चाहता है तो उसे ममकार एवं अहंकार नामक सेनापतियों को पहले नष्ट करना आवश्यक है। उनके नाश हो जाने पर व्यूह को तोड़कर विजय प्राप्त करना अत्यन्त सुकर है। ममकार का लक्षण शश्वदनात्मोयेषु स्वतनुप्रमुखेषु कर्मजनितेषु । आत्मीयाभिनिवेशो ममकारो मम यथा देहः ॥ १४ ॥ अर्थ-जो आत्मा से सदा भिन्न हैं, ऐसे कर्मोदय से उत्पन्न अपने शरीर आदि (स्त्री, पुत्र, मकान आदि) पदार्थों में आत्मीय (स्वत्व) भावना हो जाना सो ममकार (ममत्वबुद्धि) है । जैसे अपने शरीर में, जो कि आत्मा से पृथक है, "यह मेरा है" ऐसी बुद्धि होना ॥ १४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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