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________________ ७४ तत्त्वानुशासन ह वर्ण - प्रसन्न हृदय होकर सर्वाभरणभूषित श्वेतवर्ण वाले ह बीज मन्त्र का हृदय कमल में स्थापन कर चिन्तन करें । क्ष बीज-क्ष बीज मन्त्र का जो सोलह भुजाओं में अलंकृत हेम वर्णमय ध्यान करें । सकल स्वरों का ध्यान शुभ्र वर्ण से सुशोभित, सर्वाभरणभूषित शाकिनी- डाकिनी, भूतपिशाच - व्यन्तर- राक्षस- ग्रहयूथ, छेदन - भेदन-ताउनकर्म में समर्थ १६ स्वरों का सदैव ध्यान करें । ॐकार का ध्यान पाँच वर्णों से सुशोभित अनन्तचतुष्टय लक्ष्मी का प्रदाता ॐ सदा ध्येय है । ॐकार बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥ समस्त विघ्नों की शान्ति के लिये "क्षी, ल, व और र" बीजाक्षरों का ध्यान करें। इनमें क्षी, व, ल हेमवर्णमय है । ल चतुर्भुजालंकृत है, व सोलह कलायुक्त है तथा र भी सोलह कलायुक्त है । ( मृत्युञ्जय विधान ) आत्मा व अष्टाक्षरो मन्त्र को ध्यान विधि आठ दिशा सम्बन्धी आठ पत्रों से पूर्ण कमल में भले प्रकार स्थापित और अत्यन्त स्फुरायमान ग्रीष्म ऋतु के सूर्य के समान दैदीप्यमान आत्मा का स्मरण करे । Jain Education International मो म् ण अहं अहं अहं (अह) अहं (आत्मा अहं अहं For Private & Personal Use Only (अहं) प्रणव है आदि में जिसके ऐसे मन्त्र को पूर्वादिक दिशाओं में प्रदक्षिणारूप एक-एक पत्र पर अनुक्रम से एक-एक अक्षर का चिन्तन करे। वे अक्षर ॐ मो अरहंताणं ये हैं | www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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