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________________ तत्त्वानुशासन ७३ ध्यान करने वाला इस मन्त्राधिप को अन्य क्रिसो को शरण न लेकर, इस ही में साक्षात् तल्लीन मन करके, स्वप्न में भी इस मन्त्र से च्युत न हो ऐसा दृढ़ होकर ध्यावै । ऐसे पूर्वोक्त प्रकार महामन्त्र के ध्यान के विधान को जानकर मनि समस्त अवस्थाओं में स्थिर स्वरूप सर्वथा नासिका के अग्रभाग में अथवा भौंहलता के मध्य में इसको निश्चल धारण करे। तत्पश्चात् क्रम से (लखने योग्य वस्तुओं से) छुड़ाकर, अलक्ष्य में अपने मन को धारण करते हुए, ध्यान के अन्तरंग में अक्षय तथा इन्द्रियों के अगोचर ज्योति अर्थात् ज्ञान प्रकट होता है। ( ज्ञानार्णव सर्ग २९) अहं का ध्यान अहँ के आदि में अ और अन्त में ह और मध्य में रेफ है तथा बिन्दु से सहित है इस प्रकार "अ र ह म्" चार शब्द से मिलकर अहं तत्त्व निष्पन्न होता है प्रथम अवस्था में द्वयाक्षर रूप “अह" का ध्यान किया जाता है । पुनः अभ्यास होने पर पिण्डरूप ध्यान करे। इसमें भी अभ्यस्त होनेपर चन्द्रसमप्रभायुक्त केवल मात्र हकार वर्ण का ध्यान किया जाता है। संयुक्त वर्ण के ध्यान में ध्वनि है परन्तु वर्णमात्र का चिन्तन ध्वनिरहित हो जाता है उस समय ध्यानो एक अलौकिक अनुभूति मात्र करता है इसी को "अनाहत नाद" कहा है। यह अनहद नाद उच्चारण योग्य नहीं रहता। आचार्यश्री कहते हैं कि यह रहस्यमूलक "तत्व" गुरुप्रसाद से ही प्राप्त होना सम्भव है। योगशास्त्रों में इसका क्रम बतलाते हुए लिखा है कि प्रथमावस्था में अ, ह, रेफ और बिन्दु का पृथक्-पृथक चिन्तन करे । पुनः क्रमशः इनका संयोग करते हुए विचारे, पिण्डरूप अर्ह होनेपर इसे ध्यान केन्द्र बनावे । अन्त में "ह" वर्ण मात्र रह जावे अर्थात् "अनाहत' नाद में लीन होने का अभ्यास करे। ( अमृताशीति/३६ श्लोक अनुवादिका-ग० आ० विजयामतीजी ) अ वर्ण-कनकवर्णमय चतुर्भुजालंकृत अवर्ण का नाभिमंडल में चिन्तन करे। ____वर्ण-कनकवर्णमय चतुर्भुजालंकृत, सर्वाभरणभूषित "ध" वर्ण का चिन्तन हृदयकमल में इष्टसिद्धि के लिए करें । ठ वर्ण-रक्ताम्बराभरणभषित "ठ" वर्ण का भोंह के मध्य में चिन्तन करें। यह सर्व शान्तिविधायक बोज मन्त्र है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001848
Book TitleTattvanushasan
Original Sutra AuthorNagsen
AuthorBharatsagar Maharaj
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1993
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size12 MB
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