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________________ -३. ४९) सिद्धान्तसारः हिंसाद्यनर्थमूलानामारम्भाणां प्रवर्तकम् । सहावद्येन यद्वाक्यं तत्सावद्यमुदीरितम् ॥ ४२ क्रोधादिभितं निन्द्यं विधुरं' वैरकारणम् । तदप्रियं वचोऽवाचि दुर्गदुर्गतिदायकम् ॥ ४३ भिनत्ति परमर्माणि सर्वस्वहरणादिभिः । तद्वचो गहमाख्यान्ति गर्झदुःखप्रदं जिनाः ॥ ४४ हितं मितं क्रियायुक्तं सर्वसत्वसुखावहम् । मधुरं वत्सलं वाक्यं वक्तव्यं धर्मवत्सलैः ॥ ४५ चतुर्विधमिदं निन्द्यमसत्यं सेवितं नृणाम् । चतुर्गतिमहादुःखवृक्षकक्षप्ररोहणम् ॥ ४६ अविश्वासकर निन्दापदमङगुलिदर्शकम् । इह लोकेऽपि दौर्भाग्यशोकसन्तापकारकम् ॥ ४७ सत्यं तदुदितं प्राज्ञैर्यदादेयहिंसकम् । तथा तद्वदतामत्र किमसाध्यममुत्र वा ॥ ४८ स्वयमेव समायान्ति सम्पदः सत्यवादिनाम् । कि चित्रं यद्यदायान्ति हंस्यः पद्माकरं वनम् ॥४९ जिनेश्वरोंने सावध, अप्रिय और गादि निन्द्य भाषणके तीन भेद कहे हैं। यह घोर असत्य भाषण नरकभूमिमें जीवका प्रवेश करने में कारण होता है। ४१ ।।। (सावद्यादि-वचनोंका-वर्णन ।)- हिंसादि अनर्थोंका-संकटोंका जो मूल कारण है और जीव-घात जिनमें होता है ऐसे सेवा, कृषि, व्यापार आदि आरंभोंको उत्पन्न करनेवाला जो पापसहित वाक्य बोला जाता है, उसे सावधवचन नामक असत्य भाषण कहते हैं । क्रोध जिसके आदिमें है, ऐसा भाषण अर्थात् क्रोधसे आखें लाल करके बोलना, गर्वसे दूसरोंको नीच-तुच्छ समझकर अपमानकारक भाषण बोलना निंदायुक्त वचन, संकट उत्पन्न करनेवाला भाषण और वैरजनक भाषण इन भाषणोंको अप्रिय भाषण कहते हैं । यह भाषण कष्टयुक्त दुर्गति देनेवाला है। जिस भाषणसे दूसरोंका मर्मछेद होता है, दूसरोंके सर्वस्वका हरण हो जाता है, जो चुगलीका कारण है, उसे जिनेश्वर ग_भाषण कहते हैं । यह भाषण गर्दा-निन्दनीय दुःखोंको देनेवाला हैं ॥ ४२-४४ ।। (धर्मप्रेमी लोगोंका भाषण ।)- हितकर, मित-अल्प, सदाचारप्रयुक्त, सर्व प्राणियोंको सौख्य देनेवाला, मधुर और प्रेमयुक्त ऐसा भाषण धर्मप्रेमियों द्वारा बोला जाना योग्य है ॥४५॥ ऊपर जो असत्यके चार प्रकार कहे हैं वे निंद्य हैं। उनका सेवन जिन मनुष्योंने किया है, उन्हें वे नरकादि चतुर्गतिके महादुःखरूपी वृक्षवनको उत्पन्न करनेके कारण हैं। ऐसे वचन अविश्वास उत्पन्न करते हैं, निन्दाके कारण हैं — यह आदमी असत्य बोलनेवाला है' ऐसा अंगुलीसे लोग उसे दिखाते हैं । इहलोकमेंभी दुर्भाग्य, शोक और सन्तापको वे उत्पन्न करते हैं ॥४६-४७।। (सत्यभाषण और उसका फल)- विद्वानोंने उसको सत्यभाषण कहा है, जो सज्जनग्राह्य-मान्य है और हिंसासे रहित है। ऐसा भाषण बोलनेवाले पुरुषको इहलोकमें और परलोकमें क्या असाध्य है? सत्यवादियोंके पास संपत्ति विना बुलाये स्वयं प्राप्त होती है। हंसिनियां कमलवनको १ आ. निष्ठुरम् २ आ. प्ररोहकम्. ३ आ. सत्यवादिनम् ४ आ. वरम्. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001846
Book TitleSiddhantasarasangrah
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorJindas Parshwanath Phadkule
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1972
Total Pages324
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size23 MB
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