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________________ सिद्धान्तसार: ( २. १६८ क्षयोपशमहेतुश्च भवप्रत्यय इत्यपि । आदौ ' नारकदेवानां शेषाणां षड्विधः पुनः ॥ १६८ अनुगायननुगामी वर्धमानस्तथेतरः । अवस्थिताभिधानोऽपि ततोऽयमनवस्थितः ॥ १६९ ४०) यह उत्पन्न नहीं होता है । इस अवधिज्ञानके देशावधि, परमावधि और सर्वावधि ऐसे तीन भेद है | देशावधि अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित ऐसे छह भेद हैं । परमावधिज्ञानके अनवस्थित और हीयमान भेदोंको छोड़कर अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान और अवस्थित ऐसे चार भेद हैं । तथा सर्वावधि के अनुगामी, अननुगामी और अवस्थित ऐसे तीन भेद हैं ॥ १६७ ॥ ( देशावधिज्ञान के भेद और स्वामी । ) - यह देशावधिज्ञान क्षयोपशमजन्य और भवप्रत्यय भेदसे दो प्रकारका है । पहिला भेद भवप्रत्यय अवधिज्ञानरूप है । वह देव और नारकियोंको प्राप्त होता है और क्षायोपशमिक अवधिज्ञान बाकीके जीवोंको अर्थात् मनुष्य और पशुओं को प्राप्त होता है । तात्पर्य - देवनारकियोंको जब पर्याप्तावस्था प्राप्त होती है तब उनको भवप्रत्यय अवधिज्ञान प्रगट होता है । भावार्थ- देव और नारकी अपने उत्पन्न होनेके स्थान में उत्पन्न होनेपर अन्तर्मुहूर्त में छह पर्याप्तियोंसे - आहार, शरीर, इंद्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन इनसे परिपूर्ण होते है और ‘मैं यहां कैसे आया, मैने पूर्वजन्ममें कौनसा शुभाशुभ कृत्य किया था इत्यादि रूपसे जब विचार करता है तब उसे यह भवप्रत्यय अवधिज्ञान प्राप्त होता है । जिनेश्वरकोभी भवप्रत्यय अवधि रहता है । वह देव नारकियोंके समान उनके सर्व अंगमेंसे उत्पन्न होता है । जो क्षयोपशमज अवधिज्ञान मनुष्य और पशुओंको उत्पन्न होता है, उसे गुण-प्रत्यय ऐसाभी नाम । सम्यग्दर्शनादि निमित्त प्राप्त होनेपर जिनका कर्म उपशान्त और क्षीण हो गया है उन्हें यह प्राप्त होता है । अवधिज्ञान क्षयोपशमसेही प्राप्त होता है । परंतु भवकी प्रधानतासे देव नारकियोंको यह प्राप्त होने से इसे भव-प्रत्यय कहते हैं । जैसे पक्षियोंके कुलमें जन्म होनेसे बिना शिक्षणके पक्षियोंको आकाशगमन गुण प्राप्त होता है, वैसे देव और नारकावस्था प्राप्त होनेपर उनको अवधिज्ञान प्राप्त होता है । मनुष्य और पशुओंकोभी पर्याप्तावस्थामें ही सम्यग्दर्शनादि गुण प्राप्त होनेपर गुण-प्रत्यय अवधिज्ञान प्राप्त होता है । जो असंज्ञिपशु होते हैं उन्हें अवधिज्ञान प्राप्त नहीं होता । अर्थात् संज्ञि और पर्याप्तक मनुष्य और पशुओंको अवधिज्ञानकी योग्यता होती है ॥ १६८ ॥ ( गुणप्रत्यय देशावधिके छह भेदोंके नाम । ) - अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित ऐसे छह भेद गुण-प्रत्यय देशावधिज्ञानके समझने चाहिये ।। १६९॥ १ आ. आद्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001846
Book TitleSiddhantasarasangrah
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorJindas Parshwanath Phadkule
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1972
Total Pages324
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size23 MB
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