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-२. १६७)
सिद्धान्तसारः
विशतिप्राभृतं वस्तु श्रुतं श्रुतविचक्षणाः । कथयन्ति समासोऽपि तस्य पूर्वावधिर्बुधाः ॥ १६४ दशादि वस्तु संख्यातं पूर्व पूर्वविदो विदुः । तत्समासो भवेत्सवं श्रुतस्कन्धावधिर्महान् ॥ १६५ यथा ज्ञातं मया प्रोक्तं श्रुतज्ञानं विकल्पतः। समस्तश्रुतलब्धिर्मा करोतु ध्वस्तकल्मषम् ॥ १६६ अधो बहुतरो येन विषयो धीयते स्वतः । सोऽवधिविविधो बोधो बोधशुद्धधियां' मतः ॥१६७
प्राभृतसमास कहते हैं । उत्कृष्ट प्राभृतप्राभृतसमासके भेदमें एक अक्षरकी वृद्धि होनेसे प्राभृतश्रुतज्ञान होता है ॥ १६३ ॥
( वस्तुश्रुत और वस्तुसमासश्रुत )- वीस प्राभृतोंकी वृद्धि होनेपर वस्तु नामक श्रुतज्ञान होता है । ऐसा श्रुतज्ञान-चतुर कहते हैं । वस्तु नामक ज्ञानके ऊपर अक्षरादिवृद्धिके अनुसार पूर्वज्ञानके पूर्व जितने विकल्प होते हैं, वे सब वस्तुसमासके भेद समझने चाहिये ॥ १६४ ।।
( पूर्वश्रुत और पूर्वसमासश्रुत )- दश, चौदह, आठ आदि वस्तुओंसे क्रमसे उत्पादादि पूर्वज्ञान उत्पन्न होते हैं ऐसा पूर्वश्रुतज्ञानी आचार्य कहते हैं । जो महान् श्रुतस्कन्धकी अवधि है तब तक पूर्वसमासश्रुतज्ञान होता है, जैसे दश वस्तुओंसे उत्पादपूर्व होता है । इसके अनन्तर अग्रायणीय श्रुतज्ञानके पूर्व उत्पादपूर्वसमास होता है ऐसा आगेभी समझना चाहिये ।। १६५ ।।
जैसे मैंने जाने थे वैसे इस श्रुतज्ञानके भेद मैंने कहे हैं । यह संपूर्ण श्रुतज्ञानकी लब्धि (ऋद्धि) मुझे पापरहित करें ॥ १६६ ।।
__ (अवधिज्ञानका विवरण)- जिस ज्ञानके द्वारा नीचेका रूपी द्रव्य अधिक व्यवस्थापित किया जाता हैं-जाना जाता हैं और जिसके अनेक भेद हैं उसे अवधिज्ञान कहना चाहिये, ऐसा निर्मल ज्ञानी आचार्योंका मत है । भावार्थ-अवधिज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम होनेसे अधोगत द्रव्य-रूपी पदार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावसे नियत होकर जिसके द्वारा जाना जाता है, ऐसा
विकल प्रत्यक्ष ज्ञान उसे अवधिज्ञान कहते हैं। अवधि शब्दका सीमा, मर्यादा ऐसाभी अर्थ है। इस अर्थकी अपेक्षासे इसके सीमाज्ञान, मर्यादाज्ञान ऐसाभी कहते हैं। यह ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादा धारण करता है। अर्थात् अवधिज्ञानका क्षयोपशम जितना अधिक होगा उसकी उतनी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादा बढती है, और अधिक अधिकतर रूपी द्रव्य उसका विषय होता है । इस ज्ञानावरणके क्षयोपशमके तरतमरूप असंख्य भेद है । इसलिये यह अवधिज्ञान असंख्य प्रकारका है। यह ज्ञान मतिज्ञानके समान इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न नहीं होता है अथवा श्रुतज्ञानके समान मनसे उत्पन्न नहीं होता है, परंतु यह आत्मासे उत्पन्न होता है, इसको प्रकाश, अंधकार आदिकी आवश्यकता नहीं है, बाह्य रूपी पदार्थोंका इंद्रिय और मनके साथ संबंध होकर
१ आ. बोधि
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