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-७. २२१)
सिद्धान्तसारः
(१८३
मत्स्यानां पूर्वकोटयेका परमायुः प्रकीर्तितम् । कर्मभूमिगतानां च तथैव मुनिपुङ्गवः ॥ २१३ वर्षाणां च सहस्राणि चत्वारिंशद्विरुत्तरा । सर्पाणां च परं प्रोक्तमायुरायुविजितैः ॥२१४ द्विसप्ततिसहस्राणि' पक्षिणामायुरुत्तमम् । कथयन्ति जिनाधीशा विविधागमपारगाः ॥२१५ लवणाम्बुधिमध्यस्थमत्स्यदेहः प्रमाणतः। योजनान्यष्टसंयुक्तदशैतानि मतो जिनैः ॥ २१६ नदीमुखेषु सर्वेषु पुनरेतत्प्रमाणतः । योजनानि नवैवाविश्वतत्त्वविचारकाः ॥ २१७ षत्रिंशद्योजनान्याहुः कालोदे मत्स्यविग्रहम् । अष्टादश नदीद्वारे प्रमाणाद्यतिनायकाः ।। २१८ स्वयम्भूरमणे सन्ति मत्स्याः सहस्रकायिकाः । अन्ये पञ्चशतान्येते परमोत्सेधधारिणः॥२१९ मसूरिकाकुशाग्रस्थबिन्दुसूचिपताकिनः । पृथ्व्युदकाग्निवाताश्च संस्थानेन निरूपिताः ॥ २२० नानासंस्थानसंयुक्ता हरित्कायास्तथा त्रसाः। अव्यक्तहुण्डसंस्थाना नारकाः कथिता जिनैः॥२२१
(मत्स्योंकी उत्कृष्ट आयु । )- कर्मभूमिगत मत्स्योंकी उत्कृष्ट आयु पूर्व कोटीकी है ऐसा श्रेष्ठ मुनियोंने कहा है ॥ २१३ ।।
( सोकी उत्कृष्ट आयु। )- आयुकर्मरहित तीर्थंकर परमदेवोंने सोकी आयु चौरासी हजार वर्षोंकी कही है ॥ २१४ ।।
(पक्षियोंकी उत्कृष्ट आयु।)- नानाविध आगमोंके पारगामी जिनेश्वरोंने पक्षियोंकी आयु बहात्तर हजार कही है ॥ २१५ ॥
(मत्स्योंकी शरीरावगाहनाका वर्णन । )- लवणसमुद्रके मध्यमें रहनेवाले मत्स्योंका शरीरावगाहन अठारह योजनप्रमाणका है ऐसा जिनेश्वरोंने कहा है । विश्वतत्त्वका विचार जिन्होंने किया है ऐसे गणधरोंने गंगादि नदियोंके मुख में रहनेवाले मत्स्योंकी शरीरावगाहना नौयोजनप्रमाणकी कही है। कालोदसमुद्र में मत्स्योंकी शरीरावगाहना छत्तीस योजनोंकी है। गंगादिनदियोंके मुखमें अठारह योजनोंकी मत्स्यशरीरोंकी अवगाहना है। स्वयंभूरमणसमुद्रमें मत्स्य हजारयोजनोंके रहते हैं और नदियोंके मुख में पांचसौ योजनोंकी अवगाहनावाले मत्स्य है ऐसा यतिनायकोंने कहा है ॥ २१६-२१९ ।।।
(पृथ्वीजलादिकोंका आकार । )- पृथ्वीजीवका आकार मसूरके समान है । जलका आकार दर्भानके ऊपरकी जलबिन्दु समान, अग्निका आकार सूईयोंके समूहके समान, वातका आकार पताकाके समान है ।। २२० ।।
( वनस्पति त्रस और नारकियोंका आकार ।)- वनस्पति और त्रसोंके आकार नानाविध है। तथा नारकियोंका आकार हुंड संस्थानका है ऐसा जिनेश्वरोंने कहा है । अर्थात् नारकियोंके शरीरका आकार अव्यक्त टेडामेडा अनेक प्रकारका होता है, बीभत्स होता है ॥२२१॥
१ आ. सप्तत्यब्दसहस्त्राणि २ आ. साहस्त्रिकान्तराः
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