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सिद्धान्तसारः
(७. २०४
अवसर्पणतस्तेषामेवाभाण्यवसर्पिणी' । तस्याः कालकलाषट्कं सुषमासुषमादयः ॥ २०४ कोटीकोटयश्चतस्रः स्युः सुषमासुषमादयः । सुषमासुषमाकालः सर्वसौख्यकरो नृणाम् ॥ २०५ कोटीकोट्यस्तथा तिस्रः सुषमाकाल इष्यते । सुषमादुःषमाकालः कोटीकोटिद्वयं मतः॥२०६ दुष्षमासुषमाकाल: कोटिकोटिनिगद्यते । द्विचत्वारिंशता होनः सहस्राणां हि कोविदः ॥२०७ एकविंशतिरुग्दीता सहस्राणां हि दुःषमा । तथातिदुःषमाकालो बहुदुःखप्रदो नृणाम् ॥ २०८ उत्सपिण्यास्तथा चैते षटकालाः सम्प्रकीर्तिताः। अतीवदुष्षमा आद्या सुषमासुषमान्तिका॥२०९ नारकतिर्यग्देवानां मनुष्याणामनेन च । अद्धापल्येन कर्मायुःकालस्थितिरुदीर्यते ॥ २१० तिरश्चामायुरुत्कृष्टं त्रिपल्योपममीरितम् । अन्तर्मुहूर्तकं तेषां जघन्यं मुनिनायकैः ॥ २११ उत्सेधः परमो नणां क्रोशानां त्रितयं मतम् । अङगलासङख्यभागश्च जघन्योमध्यमः परः॥११२
अद्धासागरोपमकालकी एक अवसर्पिणी होती है। उत्सर्पिणीकालका परिमाणभी दस कोटीकोटी अद्धासागरोपमकाल है। दोनों मिलकर अर्थात् वीस कोटीकोटी अद्धासागरोपमकालको एक कल्पकाल कहते है। जिसमें सर्व पदार्थोंकी आयु, ऊंचाई, आदि गुण बढते हैं उस कालको उत्सर्पिणीकाल कहते हैं, तथा ये जिसमें कम कम होते हैं उसे अवसर्पिणीकाल कहते हैं। इस कालके सुषमासुषमादिक छह भेद हैं । पहला सुषमासुषमाकाल मनुष्योंको सर्व प्रकारके सुखोंको देनेवाला है। यह काल चार कोटीकोटी सागरोपमवर्षोंका है । तीन कोटीकोटी सागरोपमकाल सुषमा नामका है। सुषमादुःषमानामका काल दो कोटीकोटी सागरोपमर्षोंका है और दुःषमासुषमानामक काल एक कोटीकोटी सागरोपमवर्षोंका है। मात्र उसमेंसे बियालीस हजार वर्ष कम करने चाहिये ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं । उसमें दुःषमाकाल इकईस हजार वर्षोंका है और अतिदुःषमाकालभी इतनाही है और वह मनुष्योंको अतिशय दुःखप्रद है । उत्सर्पिणीके छह काल कहे हैं; परन्तु उसमें अतिदुःषमा पहला भेद है और सुषमासुषमा यह अन्त्यका अर्थात् छठा भेद है ॥ २००-२०९॥
( अद्धापल्यसे कौनसी वस्तुओंकी गणना की जाती ? )- नारकी, तिर्यञ्च, देव और मनुष्य इनकी अद्धापल्यके द्वारा कर्मस्थिति, भवस्थिति, आयुः स्थिति और शरीरस्थिति जानने योग्य होती है ।। २१० ॥
(तिर्यञ्चोंकी उत्कृष्ट और जघन्य आयु । )- तिर्यञ्चोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम है ऐसा मुनिनायक कहते हैं और उनकी जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त परिमाण की है ॥ २११ ॥
( मनुष्योंकी उत्कृष्ट और जघन्य ऊंचाईका कथन )- मनुष्योंकी उत्तम ऊंचाई तीन कोसोंकी हैं। और जघन्य ऊंचाई अङगुलासंख्यात भाग है और मध्यम ऊंचाई अनेक प्रकारकी है ।। २१२ ॥
६ आ. दुःखमा
१ आ. मेषा २ आ. स ३ आ. दुःखमा ७ आ. अतीव दुःखमा या सा सुखमासुखमान्तिका
४ आ. दुःखमा ८ आ. मौहूर्तिकं
५ आ. दुःखमा ९ आ. मतः
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